Get App
FestivalsHindiHindu Culture

काल प्रारंभ और बोधन पूजा की मान्यता एवं विधि

By September 28, 2022December 1st, 2023No Comments
Kaal prarambh aur bodhan Puja

काल प्रारंभ और अकाल बोधन अनुष्ठान है जो षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत काल प्रारंभ आरंभ होने से करते है। दूसरे राज्य में भी इसे बिल्व निमंत्रण के रूप में मनाया जाता है । काल प्रारंभ की क्रिया प्रात: काल की जाती है। इस दौरान कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। माँ दुर्गा की पूजा पूरे नियम के साथ दस दिनों तक किया जाता है।

Bodhan pooja ki thali

बोधन

ऐसा माना जाता है कि सभी देवी देवता एवं मां दुर्गा दक्षिणायन काल से ही नींद में चले जाते हैं। ऐसे में हिंदू धर्म के मान्यता अनुसार बोधन परंपरा के माध्यम से उन्हें नींद से जगाया जाता है। बोधन परंपरा जिसका अर्थ होता है कि मां दुर्गा को नींद से जगाना। बोधन के इस कार्य को हिन्दू धर्म में अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन के पश्चात देवी देवताओं की आमन्त्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की आरती और वंदना भी की जाती है। बोधन की परम्परा सूरज ढलने के बाद की जाती है। यह प्रक्रिया नव दिनों तक चलती है। इसके उपरांत हिन्दू ग्रंथो के अनुसार द्वादश के दिन रावण दहन का भी नियम माना जाता है।

कल्परम्भ

नवरात्रि के समय देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। नव दिनों में मां दुर्गा की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार षष्ठी तिथि से ही दुर्गा पूजा की मान्यता अनुसार पूजा शुरु कर दी जाती है। माना जाता है इसी दिन मां दुर्गा धरती पर प्रकट होती हैं। यही कारण है कि इस दिन काल प्रारंभ कि परंपरा निभाई जाती है।

काल प्रारंभ पूजा की विधि

यह भी पढ़ें: दशहरा 2022 दशहरा की तिथि और दशहरा कैसे मनाया जाता है?

बोधन की परम्परा

बोधन की परंपरा में किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। बिल्व पत्र का शिव पूजन में बड़ा महत्व होता है। बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निंद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है। बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की वंदना को आवाह्न के तौर पर भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि सर्वप्रथम भगवान राम ने मां दुर्गा की पूजा अर्चना करके उन्हें जगाया था। देवी को नींद से जगाने के बाद ही उन्होंने रावण का वध किया था।

bodhan pooja items

काल प्रारंभ पूजा की विधि

कल्परम्भ या जिसे हम काल प्रारम्भ भी कहते है। इसकी क्रिया प्रातः काल में की जाने वाली विधि बताया गया है। सनातन धर्म और वेद के अनुसार प्रात काल जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित किया जाता है। जल समर्पित करने के उपरांत महा सप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी, इन तीनों दिन माँ दुर्गा की विधि अनुसार पूजा अर्चना, आराधना आदि का संकल्प लिया जाता है।

kaal prarambh pooja ki thali

बोधन पूजा की विधि

परम्परा में एक कलश में जल भरकर किसी पात्र में रखा जाता है। फिर उसे बिल्व के पेड़ के निचे रखा जाता है। शिव पूजन में बिल्व पात्र बेहद मान्य होता है। इसके उपरांत बोधन की क्रिया में माँ दुर्गा की नींद से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है।
बोधन के उपरांत अधिवास और आमंत्रण की परम्परा निभाई जाती है। माँ दुर्गा की पूजा में माँ दुर्गा को आमंत्रण करने की विधि माना गया है। कहते है माँ दुर्गा को अपने घर आने का निमंत्रण दिया जाता है। उसके उपरांत माँ दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है।

और पढ़ें: दुर्गा नवमी 2022: जानें दुर्गा नवमी की तिथि और शुभ मुहूर्त।

बोधन पूजा और काल प्रारंभ पूजा करने से आपके ऊपर भगवान की कृपा बनी रहेगी और आपका भविष्य और भी बेहतर होगा। अगर आप अपने भविष्य के बारे में जानना चाहते है तो इंस्टास्ट्रो के ज्योतिषी से संपर्क करे

Get in touch with an Astrologer through Call or Chat, and get accurate predictions.

Utpal

About Utpal