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जानें ज्योतिष शिक्षा के क्षेत्र में किस प्रकार से योगदान देता है?

By June 6, 2022November 21st, 2023No Comments
Education And Astrology Connection

आज के युग में शिक्षा का महत्व-

आज के समय में हमारे जीवन में शिक्षा का महत्व बढ़ता ही जा रहा है। शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत आवश्यक है। आज के युग में प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान रहते हैं। अपने बच्चों को एक अच्छी शिक्षा का स्तर प्रदान करना चाहते हैं। इसके लिए वह अपने बच्चों को एक अच्छे स्कूल या कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजते हैं।
प्राचीन काल में गुरुकुल थे। जिसमे लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते थे। पढ़ने के लिए आये विधार्थी उसी गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण किया करते थे। समय के साथ शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव आया है। आज के समय में अपना जीवन यापन करने के लिए अच्छी शिक्षा का ग्रहण करना अति आवश्यक होता जा रहा है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए। जो मानसिक रूप से उनके अनुसार हो और आगे चलकर अपने भविष्य को संजो पाए।

ज्योतिष शास्त्र में शिक्षा का महत्व-

ज्योतिष शास्त्र शिक्षा के क्षेत्र में हमारी मदद करता है। कुंडली के ग्रह और नक्षत्र के अनुसार हमें किस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना है। यह हमें बताता है। जिससे कि हमें उस क्षेत्र में सफलता मिल पाए। ज्योतिष शास्त्र में ग्रह किस भाव में है यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में दूसरे भाव, चतुर्थ भाव और पंचम भाव शिक्षा का भाव कहलाते हैं। इन तीन भावों का सम्बन्ध शिक्षा से होता है। इन भावों के आधार पर ही शिक्षा का चुनाव करना चाहिए। जिससे आप सफलता पा सकें। इन भावों का शिक्षा के क्षेत्र पर बहुत प्रभाव पड़ सकता है।

भावों का शिक्षा पर प्रभाव –

द्वितीय भाव-

द्वितीय भाव को कुटुम्ब भाव के नाम से भी जाना जाता है। द्वितीय भाव में परिवार से मिले हुए संस्कारों और शिक्षा के अनुसार शिक्षा क्षेत्र का चुनाव होता है। बच्चा पाँच साल तक अपने घर के वातावरण से ही संस्कार मिलते हैं। बच्चे के जीवन का आधार यही संस्कार होते हैं। दूसरे भाव से ही पारिवारिक वातावरण का पता चलता है। इस भाव की मुख्य भूमिका बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा में होती है। अगर बच्चे को आरंभिक शिक्षा नहीं मिल पाती है। वह इसी भाव से जीवन में सफलता की सीढी चढ़ते हैं। संस्कार दूसरे भाव से ही मिलते हैं।

चतुर्थ भाव-

कुंडली में चतुर्थ भाव को सुख का भाव भी कहा जाता है। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद स्कूल की शिक्षा इस भाव से देखी जाती है। ज्योतिष इसी भाव से शिक्षा का क्षेत्र बताता है। इससे बच्चा अपने विषय का चुनाव कर सकता है।
चतुर्थ भाव से शिक्षा की नींव का आरंभ होता है। पहले अक्षर के ज्ञान से लेकर स्कूल का पूरा भविष्य इसी भाव में समाहित होता है। हम कह सकते हैं कि स्कूल के शिक्षा क्षेत्र का आकलन इसी भाव से होता है।

पंचम भाव-

पंचम भाव शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है। आजीविका का पता इसी भाव से लगता है। ऐसी शिक्षा जो नौकरी और व्यवसाय करने में सहायता करती है। इसका पता पंचम भाव से लगता है। इस भाव की महत्वपूर्ण भूमिका विषय का चुनाव है।
बुध ग्रह को बुद्धि का कारक ग्रह माना जाता है। गुरु ग्रह गणित विषय का कारक माना जाता है। अगर किसी जातक की कुंडली में दोनों ग्रह विद्यमान हो तो उसकी शिक्षा बहुत अच्छी होती है। उस बच्चे का गणित विषय में दिलचस्पी होती है।

कुंडली में शिक्षा का विवरण-

कुंडली में कई बार ऐसी परिस्थितियां बनती है। ग्रहों की स्थिति ठीक होती पर शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होता है। क्योंकि कुंडली में ग्रह कमजोर होते हैं। शिक्षा के लिए नवांश कुंडली और चतुर्विशांश कुंडली को अवश्य देखना चाहिए। यह शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण कुंडली मानी जाती हैं। कुंडली में पंचमेश की स्थिति देखकर शिक्षा क्षेत्र का पता लगा सकते हैं।

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Jaya Verma

About Jaya Verma

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