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क्या शनि ग्रह और हमारे कर्मों का कोई आपसी संबंध है ?

By February 1, 2023December 5th, 2023No Comments
Shani greh

कई लोग ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को अपने द्वारा किये गए कर्मों के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं। अशुभ ग्रह जैसे शनि, राहु और केतु को लोग अपनी बुरी किस्मत से जोड़कर देखते हैं। परन्तु यह धारणा गलत है। इसके लिए सबसे पहले हमें यह जानना पड़ेगा कि वास्तव में शनि क्या है और कर्म क्या है ? और उनका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? तो आइये जानते हैं इंस्टाएस्ट्रो के ज्योतिषियों से शनि और कर्म का आपसी संबंध।

शनि ग्रह से जुड़े कुछ तथ्य

यह सूर्य से छटवें नंबर का ग्रह है। और आकर के हिसाब से सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। शनि के पहलू इस प्रकार हैं –

  • शनि को कर्म का देवता माना जाता है। यह शिक्षक ग्रह के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि यह जीवन के कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाता है।
  • इसे अनुशासन, न्याय और परिश्रम का कारक ग्रह माना जाता है।
  • यह आपके जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता है। ताकि आप उनसे सीखे और मजबूत बनें।

shani grah

शनि की उत्पत्ति की कथा

मान्यता है कि शनि , सूर्य देवता और उनकी पत्नी की छाया के पुत्र हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी सूर्य की आग को सहन करने में असमर्थ थी। इसलिए अपने वैवाहिक कर्तव्यों से विराम लेने के लिए वह अपने माता-पिता के घर चली गई। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सूर्य अपनी पत्नी की अनुपस्थिति को समझ ना सके, उसने अपनी छाया को अपने घर में छोड़ दिया।
सूर्य उस छाया के साथ रहने लगा और दोनों का एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब बहुत समय बाद सूर्य को इस विश्वासघात के बारे में पता चला, तब उसने अपने पुत्र शनि को स्वीकार करने से मना कर दिया। इस प्रसंग के बाद से शनि भी अपने पिता से घृणा करने लगा। मान्यता है कि इस घटना की वजह से शनि ग्रह को क्रूर और क्रोध माना जाता है।

कर्म या कर्मा क्या है ?

यह एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है क्रिया। आप जो कार्य करेंगे, आपको उसी का परिणाम मिलेगा। अच्छे कर्मों का फल लाभदायक होता है, और बुरे कर्मों का फल हानिकारक होता है। भगवत गीता के अनुसार कर्म तीन प्रकार के होते हैं –
कर्म : जो ऊंचा उठाते हैं।
वि-कर्म : जो नीचा दिखाते हैं।
अ-कर्म : ये अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया पैदा नहीं करते हैं। और मनुष्य को मुक्ति की ओर ले जाते हैं।

Hath me Podhe

शनि और कर्म का संबंध

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कई बार अच्छे कर्म करने के बाद शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा होता है शनि ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण।
अलग अलग राशि के जातकों पर शनि का प्रभाव अलग होता है। और शनि का प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक दोनों हो सकता है। यानि कि कर्म और शनि इंटरलिंक्ड होते हैं।

क्या होता है शनि वक्री ?

वक्री का अर्थ होता है उलटी चाल चलना। जब शनि ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में उलटी राह चलते हुए प्रवेश करता है, तब इसे शनि वक्री कहा जाता है। वक्री चाल चलने से शनि अधिक बलशाली हो जाता है और जातकों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। लोगों को कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है।

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जानें वर्गोत्तम शनि के बारे में

जब किसी ग्रह की स्थिति बलवान होती है, तब उसे वर्गोत्तम कहा जाता है। नवमांश कुंडली के आधार पर वर्गोत्तम शनि एक शुभ स्थति होती है। इसमें जातक को अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। उनकी इच्छाशक्ति दृढ़ होती है। और वे अपनी सेहत के प्रति सचेत व ज़िम्मेदार रहते हैं।

वृषभ कर्म में शनि का सकारात्मक प्रभाव : कुंडली में शनि की उपस्थिति से ये अच्छे नेता बन सकते हैं। ये साहसी भी होते हैं। ये लोग आत्म-अनुशासित और बुद्धिमान होते हैं। अपने आत्म-विश्वास के दम पर ये जीवन में सफल होते हैं।

वृष कर्म में शनि का नकारात्मक प्रभाव : वृषभ राशि के जातक शनि के दुष्प्रभाव से अहंकारी, लालची और जिद्दी प्रवृत्ति के हो जाते हैं। इनके अंदर ऊर्जा और प्रेरणा की कमी हो सकती है। ये स्वार्थी, असहयोग और घमंडी स्वभाव के होते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –

1. क्या कर्म और शनि इंटरलाक्ड हैं ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और कर्म का आपसी संबंध बहुत गहरा है। हमारे कर्मों से हमारा भाग्य निर्धारित होता है। कई बार शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव के कारण जातक को अशुभ फल मिलता है। अतः कर्मा और शनि आपस में जुड़े हुए हैं।

2. शनि ग्रह की विशेषताएं क्या हैं ?

शनि के पहलू इस प्रकार हैं -इसे कर्म का देवता माना जाता है। शनि शिक्षक ग्रह कहलाता है। क्योंकि यह हमें जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाता है।इसे अनुशासन, न्याय और परिश्रम का कारक ग्रह माना जाता है।

3. शनि वक्री क्या होता है ?

वक्री यानि कि उल्टी चाल चलना। जब शनि एक राशि से दूसरी राशि में उल्टी राह चलकर प्रवेश करता है, तब उसे शनि वक्री कहा जाता है। वक्री चाल चलने से शनि और ज्यादा अधिक बलशाली हो जाता है। और जातकों पर इसका बुरा प्रभाव होता है।

4. वर्गोत्तम शनि क्या होता है ?

जब किसी ग्रह की स्थिति मजबूत होती है, तब उसे वर्गोत्तम कहा जाता है। नवमांश कुंडली के अनुसार शनि की बलवान स्थिति यानी वर्गोत्तम शनि। यह एक शुभ स्थिति होती है। इसमें जातक को अनेक प्रकार के लाभ होते हैं।

5. वृषभ कर्म में शनि का प्रभाव कैसा होता है ?

प्रत्येक राशि पर शनि का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का प्रभाव हो सकता है। यदि शनि की स्थिति उपयुक्त हो तो जातक आत्म-अनुशासित और बुद्धिमान बनते हैं। ये अपने आत्म-विश्वास से जीवन में सफलता पाते हैं। परंती यदि शनि कमज़ोर या पीड़ित हो तो जातक अहंकारी, लालची और जिद्दी प्रवत्ति के बन जाते हैं।

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Yashika Gupta

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