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जानिए 7 फेरों के 7 मंत्रों का अर्थ और महत्व

By July 8, 2023December 15th, 2023No Comments
Saat Fero ke saat mantro ka arth

ऐसा माना जाता है कि, पूरी दुनिया में सबसे सुन्दर और सबसे पवित्र विवाह हिन्दू धर्म में होता है। विवाह पवित्रता का प्रतीक होता है। हिन्दू धर्म में 16 संस्कार होते हैं जिनमें से एक संस्कार विवाह होता है। विवाह का होना किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी होती है क्योकिं विवाह के पश्चात वह अपना परिवार बसाता है। जब विवाह का समय आता है तो उस दौरान न जानें कितनी ही रस्में निभाई जाती हैं जिनका हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है।

शादी से पहले की कुछ रस्में जैसे हल्दी, मेहंदी, संगीत, भात और बान ये सब होती हैं इसके बाद विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन अधिक रस्में पूरी करते हैं। इसमें एक रस्म होती है शादी के सात फेरे। शादी के सात फेरे लेते समय दुल्हन और दूल्हा अग्नि के सात फेरे लेते हैं उस दौरान वहां बैठा ज्योतिषी या पुजारी प्रत्येक फेरे पर एक मंत्र का उच्चारण करता है। उन सभी मंत्रों का उच्चारण संस्कृत भाषा में किया जाता है, जिस वजह से वहां बैठे लोगों को कुछ समझ में नहीं आता है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि 7 फेरों के 7 वचन क्या होते हैं।

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सात वचन सात फेरे

हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान 7 फेरों का विशेष महत्व होता है। यदि किसी कारणवश फेरे नहीं हो सकते हैं तो विवाह ही नहीं माना जाता है। विवाह के दौरान बहुत अधिक रस्में पूरी करनी होती हैं लेकिन यदि कोई रसम किसी वजह से पूरी नहीं हो पायी है तो इससे विवाह पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है विवाह सम्पूर्ण माना जाता है। परन्तु यदि सात वचन सात फेरे न हो तो विवाह ही नहीं होता है। इसलिए विवाह में सबसे बड़ी रसम फेरे होने की होती है। आइए जानते हैं सात फेरे के सात वचन क्या हैं।

1. प्रथम वचन

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

कन्या वर से वचन मांगती है:

सात फेरे के सात वचन में से पहले फेरे का पहला वचन कन्या वर से मांगती है, और मंत्र के अनुसार कहती है कि, आज के बाद आप जो भी धार्मिक कार्य करेंगे उसमें मुझे अपना साथी बनाएंगे। मुझे वचन दीजिए की हर पूजा- हवन में आप मुझे अपनी वामांगी बनाएंगे। अगर आप किसी भी धार्मिक स्थल पर जाएंगे तो वहां मुझे भी अपने साथ लेकर जाएंगे। और जब आप तीर्थ यात्रा पर जाएंगे तो वहां भी आप मुझे अपनी सहभागिता बनाएंगे। यदि आपको यह मंजूर है तो ही में आपके बाई और आउंगी।

कन्या वर को वचन देती है:

कन्या पहला वचन वर को देती है और कहती है कि किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य में मैं आपकी वामांगी बनकर अपना कर्तव्य पूरी श्रद्धा और भाव के साथ निभाऊंगी।

2. द्वितीय वचन

पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम ।।

कन्या वर से वचन मांगती है

कन्या वर से दूसरा वचन मांगते हुए कहती है कि जिस प्रकार से आप अपने माता-पिता का आदर करते हैं आज से उसी प्रकार से आप मेरे माता पिता का आदर और सम्मान दोनों करेंगे। इसके साथ ही आप मेरे परिवार की क्या मर्यादा है उसका भी ध्यान रखेंगे। आप एक बार सोचें कि क्या आप ऐसा करेंगे यदि हां तो में आपके वामांग आने को तैयार बैठी हूँ।

कन्या वर को वचन देती है

कन्या वर को दूसरा वचन देती है कि मैं भी आपके सभी परिवार के सदस्यों का ध्यान रखूंगी। छोटे बच्चों को प्यार और बड़े लोगों और बुजर्गों को आदर और सम्मान दूंगीं। आपके परिवार में जो भी मुझे मिलेगा मई उसमें ख़ुशी- ख़ुशी रहूंगी।

3. तृतीय वचन

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्या:।
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं।।

कन्या वर से वचन मांगती है

कन्या वर से तीसरा वचन मांगते हुए कहती है की अभी मेरे जीवन की तीन अवस्थाएं रहती हैं युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था यदि आप इन तीनों अवस्थाओं में मेरे साथ रहने के लिए तैयार हैं और मेरा जीवन भर साथ देने के लिए भी तैयार हैं तो में आपके वामांग आने आना चाहती हूँ। इस प्रकार कन्या वर से उसका जीवन भर साथ देने के लिए कहती है।

कन्या वर को वचन देती है

अब कन्या वर को तीसरा वचन देते हुए कहती है कि में जीवन भर आपकी सेवा करती रहूंगी और हमेशा आपका पेट भरा हुआ रखूंगी आपको हमेशा आपकी पसंद का भोजन तैयार करके देना मेरा कर्तव्य होगा।

4. चतुर्थं वचन

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं।।

कन्या वर से वचन मांगती है

शादी होने से पहले तक लड़के के ऊपर गृहस्थ जीवन का कोई अनुभव नहीं होता है वह नहीं जानता की परिवार की क्या जिम्मेदारियां होती हैं इसी को ध्यान में रख कर चौथा वचन कन्या वर से मांगती है। कन्या वर से चौथा वचन मांगते हुए कहती है कि विवाह के पश्चात हमारे परिवार की सभी जिम्मेदारियां आप पर होंगी। आप हमारे गृहस्थ जीवन को आगे बढ़ाने में मेरे साथ हमेशा रहेंगे। यदि आप तैयार हैं तो ही मैं आपके वामांग में आउंगी।

कन्या वर को वचन देती है

कन्या वर को चौथा वचन देती है की में पूरी तरह स्वच्छ होकर स्नान आदि से खुद को शुद्ध करने के बाद 16 श्रृंगार धारण करके आपको अपने मन, वचन और कर्म से होने वाले सभी कार्यों में आपका साथ दूंगीं।

5. पंचम वचन

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या।।

कन्या वर से वचन मांगती है

पांचवें वचन में कन्या वर से कहती है कि, अभी तक आप जो भी ख़र्चा और लेन- देन करते थे उसमें किसी की भागीदारी नहीं होती थी परन्तु विवाह के पश्चात मैं आपके साथ आपकी अर्धांगिनी बनकर जुड़ जाउंगी अर्थात आपका यह कर्त्वय होगा कि आप जो भी लेन- देन करते हैं और जो भी ख़र्चा करते हैं उसमें मुझे भी अपना भागीदारी बनाएं। अर्थात आप जो भी धन सम्बन्धी क्रिया करेंगे उसमें में भी आपके साथ रहूंगी। यदि आपको कोई आपत्ति नहीं हैं तो में आपके वाम भाग में आने को तैयार हूँ।

कन्या वर को वचन देती है

पांचवें वचन में कन्या वर को वचन देती है कि आपके जीवन में जो भी सुख और दुःख होगा उसमें हमेशा आपका साथ दूंगी। आपके दुःख में शांति और ख़ुशी में हँस के साथ दूंगी। मैं कभी भी किसी दूसरे पुरुष की तरफ नहीं देखूंगी।

6. षष्ट वचन

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम ।।

कन्या वर से वचन मांगती है

छठे वचन में कन्या वर से अपने अपमान को लेकर उसे वचन मांगती है। कन्या कहती है कि, यदि में आपके पुरे परिवार अपने पुरे परिवार या अपनी सहेलियों और जानने वालों के बीच कभी भी रहूंगी तो आप मेरा अपमान नहीं करेंगे। अर्थात किसी दूसरे व्यक्ति के सामने आप मेरा अपमान नहीं करें। इसके साथ ही कन्या वर से कहती है कि, विवाह के पश्चात आप किसी भी तरह का नशा नहीं करेंगे और जुआ भी नहीं खेलेंगे। यदि आपको मंजूर है तो में आपकी बाई और आने को तैयार हूँ।

कन्या वर को वचन देती है

छठे वचन में कन्या वर को कहती है कि आपके घर में आपके माता पिता को अपने माता पिता बना लूंगीं और उनकी जीवन भर सेवा करूंगीं। आपके घर में जो भी मेहमान आएंगे उनका आदर करूंगी और उनकी सेवा में कमी नहीं होने दूंगी। आप जहाँ भी रहेंगे आपके साथ ही रहूंगी।

7. सप्तम वचन

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या।।

कन्या वर से वचन मांगती है

यह विवाह का सातवां और आखिरी वचन है जिसमें कन्या वर से मांगती है कि, इस विवाह के पश्चात दुनिया भर में जितनी भी अन्य स्त्रियां हैं उन्हें आप अपनी माता और बहनें समझेंगे। अर्थात मुझे छोड़ कर आप किसी पराई स्त्री को नज़र उठा कर नहीं देखेंगे। हमारे बीच में जो रिश्ता बनने जा रहा है उसमें किसी दूसरे की भागीदारी नहीं होगी यदि आपको स्वीकार है, तभी मैं आपकी बायीं और आने को तैयार हुँ।

कन्या वर को वचन देती है

सातवें वचन में कन्या वर को वचन देती है कि आपके साथ सभी धर्म, अर्थ और कर्म के कार्यों में हमेशा साथ रहूंगी और आपकी आज्ञा का पालन करूंगी। यहाँ मौजूद अग्नि, और समस्त ब्रह्माण्ड एवं मेरे और आपके माता पिता और सभी रिश्तेदारों के सामने मैं आपको अपना पति परमेश्वर स्वीकार करते हुए अपने तन मन धन से खुद को आपकी समर्पित करती हूँ।

तो इस प्रकार हिन्दू धर्म में होने वाले विवाह के 7 वचन का अर्थ हमने यहाँ आपको बताया। आजकल के समय में लोग विवाह के समय विवाह के 7 वचन दे तो देते हैं। लेकिन, इन वचनों का पालन करने वाले लोग बहुत कम होते हैं।

सात फेरे का अर्थ

सात फेरे का अर्थ विवाह के दौरान जो अग्नि के चारों और सात फेरे लिए जाते हैं उनसे सम्बंधित है। सात फेरे के द्वारा कन्या और वर सात जन्मों के लिए एक साथ बंध जाते हैं। सात फेरे लेने वाली इस शुभ क्रिया को सप्तपदी भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जिस प्रकार 7 ऋषि हैं और 7 रंगों का ही इन्द्रधनुष है जो आसमन की खूबसूरती बढ़ा देता है। इसलिए सात की संख्या को शुभ माना जाता है। और सात फेरे भी होते हैं। सात फेरे का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक है। सात फेरे का महत्व आज से नहीं है बहुत पुराने समय से प्रचलित है।

हिन्दू विवाह महत्व

हिन्दू धर्म में विवाह को एक पवित्र और महत्वपूर्ण क्रिया माना जाता है। हिन्दू धर्म में विवाह को को 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है। विवाह के पश्चात वर वधु के बीच जो रिश्ता बनता है वह शारीरिक रिश्ता नहीं अपितु एक आत्मिक संबंध वाला रिश्ता बनता है। दोनों लोग विवाह के पश्चात अपने घ्रस्त जीवन में प्रवेश करके अपने परिवार को आगे बढ़ाएं और अपने रिश्ते में एकता और पवित्रता बनाएं रखना ही हिन्दू विवाह महत्व है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-

1. वर वधु 7 फेरे क्यों लेते हैं?

हिन्दू धर्म में 7 की संख्या का बहुत महत्त्व है। यहाँ 7 ऋषि, 7 संगीत के सुर, 7 परिक्रमा, 7 इंद्रधनुष के रंग हैं इसलिए 7 ही फेरे है। कहा जाता है कि 7 की संख्या शुभ है।

2. क्या हिन्दू धर्म में 7 फेरो के बिना विवाह हो सकता है?

हिन्दू धर्म में 7 फेरो के बिना विवाह सफल नहीं होता है। शादी की दूसरी रस्में रुक सकती हैं परंतु फेरो के बिना विवाह संभव नहीं हो सकता है।

3. क्या फेरो के समय वर भी कन्या से वचन मांगता है?

फेरो के समय कन्या वर को 7 वचन देती है और 7 वचन वर से मांगती भी है। वचन मांगने के बाद वह वर से पूछती भी है की यदि आप मंजूर है तभी मैं आपके वामांग आउंगी।

4. 7 फेरे के 7 वचन का क्या अर्थ होता है?

7 फेरे के 7 वचन के द्वारा कन्या और वर एक दूसरे का जीवन भर साथ निभाने को लेकर वचन देते हैं। प्रत्येक फेरे को लेते हुए कन्या और वर अग्नि के चारों और घूमकर 1 वचन लेते हैं।

5. विवाह में 7 फेरो की जगह 4 फेरे क्यों लिए जाते हैं?

ऐसा कहा जाता है कि 4 फेरे 4 पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को इंगित करते हैं। इसलिए शास्त्रों में 4 फेरों को लेना ही अनिवार्य बताया जाता है।

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