Get App
HindiHindu CultureMythological Stories

युग कितने प्रकार के होते हैं,मनुष्य एक युग में कितनी बार जन्म लेता है?

By October 6, 2025October 7th, 2025No Comments

हिन्दू धर्म में समय को एक रेखीय (linear) अवधारणा के रूप में नहीं, बल्कि एक चक्र (cycle) के रूप में देखा जाता है। यह चक्र चार महा-युगों में बँटा है। आइए जानते हैं कि युग कितने है, उनके नाम क्या हैं, उनकी विशेषताएँ क्या हैं और इन युगों में जीवन का क्या नियम है। युगों के नाम और उनकी विशेषताओं को समझना आपकी आध्यात्मिक यात्रा के लिए बहुत आवश्यक है।

kundli free online by instaastro

हिन्दू धर्म में युगों की संख्या और नाम

यदि आप जानना चाहते हैं कि कितने युग होते हैं, तो इसका सीधा उत्तर है: चार प्रमुख युग होते हैं। इन चारों युगों को मिलाकर एक ‘महायुग’ (Mahayuga) बनता है, और ऐसे हज़ारों महायुगों से मिलकर एक ‘कल्प’ (Kalpa) बनता है।

चारों युगों के नाम (क्रम से):

  1. सत्य युग (Satya Yuga) या कृत युग
  2. त्रेता युग (Treta Yuga)
  3. द्वापर युग (Dwapar Yuga)
  4. कलि युग (Kali Yuga)

ये चारों युग एक निश्चित अवधि के बाद दोहराए जाते हैं।

👉 और पढ़ें: आज की तिथि

yug kitne prakar k hote hain

हिन्दू धर्म के चार युगों का रहस्य: जानें कितने युग होते हैं और उनका महत्व

प्रत्येक युग की अपनी अवधि, धर्म की स्थिति और मनुष्य की आयु एवं क्षमताओं में अंतर होता है। इन युगों को उनके धार्मिक मूल्यों के आधार पर मापा जाता है, जहाँ सत्ययुग में धर्म 100% होता है और कलियुग में यह घटकर केवल 25% रह जाता है।

👉 और पढ़ें: आज का पंचांग

1. सत्य युग या कृत युग (Satya Yuga)

यह युगों के नाम में सबसे श्रेष्ठ युग माना जाता है। इसे ‘कृत युग’ भी कहते हैं।

  • अवधि: शास्त्रों के अनुसार, इसकी अवधि 17,28,000 मानव वर्ष थी।
  • धर्म की स्थिति: इस युग में धर्म अपने चारों पैरों पर खड़ा रहता है (यानी 100% धर्म)। यहाँ अधर्म का कोई स्थान नहीं होता।
  • मनुष्य की विशेषताएँ: लोग पूरी तरह से सत्यवादी होते थे। मनुष्य की औसत आयु लगभग 1 लाख वर्ष होती थी। इस युग में तपस्या, ध्यान और मोक्ष प्राप्ति बहुत सरल थी।
  • इस युग के भगवान: इस युग में भगवान विष्णु मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए।

2. त्रेता युग (Treta Yuga)

सत्ययुग के बाद त्रेता युग आया, जो धर्म में पहली गिरावट को दर्शाता है।

  • अवधि: इस युग की अवधि 12,96,000 मानव वर्ष थी।
  • धर्म की स्थिति: धर्म तीन पैरों पर खड़ा रहता है (75% धर्म, 25% अधर्म)। लोग अभी भी धार्मिक थे, लेकिन लालच और ईर्ष्या का जन्म हो चुका था।
  • मनुष्य की विशेषताएँ: मनुष्य की औसत आयु घटकर लगभग 10,000 वर्ष हो गई थी।
  • त्रेता युग के भगवान: यह युग सबसे प्रसिद्ध है क्योंकि इस युग के भगवान हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम (भगवान विष्णु के सातवें अवतार)। इसके अलावा, भगवान विष्णु वामन अवतार और परशुराम अवतार के रूप में भी प्रकट हुए थे।

3. द्वापर युग (Dwapar Yuga)

द्वापर युग वह समय था जब मनुष्य ने भौतिकवाद को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया था।

  • अवधि: इसकी अवधि 8,64,000 मानव वर्ष थी।
  • धर्म की स्थिति: धर्म केवल दो पैरों पर खड़ा था (50% धर्म, 50% अधर्म)। संघर्ष और युद्ध आम हो गए थे।
  • मनुष्य की विशेषताएँ: मनुष्य की औसत आयु घटकर लगभग 1,000 वर्ष हो गई थी।
  • इस युग के भगवान: इस युग के भगवान स्वयं श्री कृष्ण थे (भगवान विष्णु के आठवें अवतार), जिन्होंने कुरुक्षेत्र में धर्म की स्थापना के लिए महाभारत का युद्ध करवाया।

4. कलि युग (Kali Yuga)

युगों के नाम में यह वर्तमान युग है, जिसे हिन्दू धर्म में सबसे अंधकारमय युग माना जाता है।

  • अवधि: इसकी अवधि 4,32,000 मानव वर्ष है, जिसमें से लगभग 5,126 वर्ष बीत चुके हैं।
  • धर्म की स्थिति: धर्म केवल एक पैर पर खड़ा है (25% धर्म, 75% अधर्म)। लालच, द्वेष, पाखंड और भ्रष्टाचार चरम पर है।
  • मनुष्य की विशेषताएँ: मनुष्य की औसत आयु घटकर 100 वर्ष या उससे भी कम हो गई है। सत्यवादी लोग कम हैं, और मोक्ष पाना सबसे कठिन माना जाता है।
  • इस युग के भगवान: इस युग में भगवान विष्णु बुद्ध अवतार (नौवें अवतार) के रूप में प्रकट हुए। कलियुग के अंत में, धर्म की पुनः स्थापना के लिए वे कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे।

मनुष्य एक युग में कितनी बार जन्म लेता है?

यह प्रश्न कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष की गहन अवधारणा से जुड़ा है। इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं है कि मनुष्य एक युग में कितनी बार जन्म लेता है, क्योंकि यह पूरी तरह से आत्मा के कर्मों पर निर्भर करता है।

1. जन्मों की संख्या निश्चित नहीं है:

आत्मा एक युग में एक बार भी जन्म ले सकती है, या वह उसी युग में हज़ारों बार जन्म ले सकती है। जन्मों की संख्या युग से निर्धारित नहीं होती, बल्कि आत्मा द्वारा किए गए कर्मों (अच्छे और बुरे) से निर्धारित होती है।

2. उद्देश्य मोक्ष है:

आत्मा का अंतिम लक्ष्य जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलकर मोक्ष प्राप्त करना है। जब तक आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता, तब तक उसे युग दर युग (सत्ययुग हो या कलियुग) जन्म लेना पड़ता है।

3. कर्म का सिद्धांत:

यदि आत्मा के कर्म शुद्ध हैं, तो वह कम जन्म लेगी और मोक्ष की ओर बढ़ेगी। यदि कर्म बंधनकारी हैं, तो आत्मा को बार-बार जन्म लेना होगा। इसलिए, मनुष्य कितनी बार जन्म लेगा, यह उसकी व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्रगति पर निर्भर करता है, न कि युग की अवधि पर।

यह भी पढ़ें:रात को झाड़ू न लगाना अंधविस्वास है या धार्मिक मान्यता?

आपके लिए यह जानकारी क्यों महत्वपूर्ण है?

चारों युगों के नाम और उनकी प्रकृति जानने का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि आपका जीवन किस युग में है और आप उस युग के नियमों का पालन कैसे करें।

  1. कर्म की महत्ता: हमें यह समझना चाहिए कि कलि युग में जहाँ मोक्ष प्राप्त करना कठिन है, वहीं भगवान के नाम का जप करना और निस्वार्थ कर्म करना सबसे आसान माना गया है।
  2. अंतिम लक्ष्य: युग कितने है यह जानने के बजाय, इस पर ध्यान केंद्रित करें कि आप अपने जीवनकाल में कितने शुद्ध कर्म कर सकते हैं ताकि पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पा सकें।

युगों के नाम हमें बताता है कि समय एक अनवरत चक्र है, और हर क्षण का महत्व है। अपने वर्तमान युग को समझकर, हम अपने जीवन को अधिक सार्थक बना सकते हैं।

यह भी पढ़ें:रात को झाड़ू न लगाना अंधविस्वास है या धार्मिक मान्यता?

इस प्रकार की अधिक जानकारी के लिए इंस्टाएस्ट्रो के साथ जुड़े रहें और हमारे लेख जरूर पढ़े।

Get in touch with an Astrologer through Call or Chat, and get accurate predictions.

Jaya Verma

About Jaya Verma

I love to write, I participated as co-author in many books, also received prizes at national level for writing article, poetry and I got a letter of appreciation from hirdu foundation. I have 4 year of experience in this field.