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नरक चतुर्दशी 2024: नरक के राजा यमराज का पर्व!

By October 11, 2024No Comments
Narkak Chaturdasi

हिन्दू पंचांग के अनुसार नरक चतुर्दशी कार्तिक अमावस्या से एक दिन पूर्व यानि कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी का पर्व दीपों के उत्सव दीपावली से एक दिन पूर्व और धनतेरस के एक दिन बाद मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, रूप चौदस, नरक चौदस, रूप चतुर्दशी अथवा नरक पूजा के नामों से भी जाना जाता है। यह पर्व भारत के अनेक राज्यों में भिन्न नामों से जाना जाता है। पांच दिनों के दीपावली पर्व की शुरुआत होती है धनतेरस से, फिर नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा तथा अंत में भाई दूज। यह पाँचों त्यौहार हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखते हैं।

कब है नरक चतुर्दशी ?

नरक चतुर्दशी  2024 का आगमन 30 अक्टूबर को सुबह 01 बजकर 15 मिनट से होगा और समापन 31 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट पर होगा। ऐसे में इंस्टाएस्ट्रो के विशेषज्ञों का कहना है कि उदया तिथि के अनुसार नरक चतुर्दशी 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। 

नरक चतुर्दशी की पूजा विधि-

इस पावन पर्व पर प्रातः कल उठकर, स्नान करके साफ़ वस्त्र पहनें। स्नान करते समय तिल के तेल से शरीर की  मालिश करें और फिर अपामार्ग यानि चिरचिरा (औषधीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाएं।  स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
स्नान आदि से निवृत होकर पूजा की तैयारी करें। घर के ईशान कोण में यमराज, कृष्ण भगवान, माता काली, भगवान शिव तथा हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें। सभी देवी-देवताओं की विधि-पूर्वक पूजा करें। कुमकुम-अक्षत का तिलक लगाएं, फूल अर्पित करें, फल अथवा मिठाई का भोग लगाएं, तथा अंत में धूप जलाएं। पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें।

Puja Thali

नरक चतुर्दशी का महत्व-

मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना की जाती है। इससे मनुष्य के सर से अकाल मृत्यु का भय टल जाता है। अतः यमराज की पूजा करके लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। यमराज की पूजा करने से पापों का भी नष्ट होता है। इसलिए नरक चतुर्दशी के दिन अपने सभी गलत कार्य के लिए क्षमा याचना करना चाहिए।
मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान करते समय शरीर पर तिल का तेल मलना चाहिए इससे नरक के भय से मुक्ति मिलती है और मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्ति होती है। नरक चतुर्दशी के दिन शरीर पर उबटन भी मलना चाहिए इससे रूप में निखर आता है। यही कारण है कि इस पर्व को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण से सुन्दर रंग व रूप की प्रार्थना करनी चाहिए। 

Til Ka Tel

नरक चतुर्दशी की कहानी

नरक चतुर्दशी के पर्व की कई पौराणिक व धार्मिक कहानी हैं। आइये पढ़ते हैं –

श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध-

पौराणिक काल में नरकासुर नाम का एक दैत्य था जिसने सभी देवी-देवताओं की शांति भंग कर दी थी। उस क्रूर व अत्याचारी राक्षस ने 16 हज़ार लड़कियों को बंधक बना लिया था। नरकासुर को वरदान था कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों ही हो सकती है इसलिए भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा द्वारा नरकासुर का संहार किया। नरकासुर का वध कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को होने के कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाने लगा। श्री कृष्ण ने नरकासुर की कैद से 16हज़ार लड़कियों को मुक्त किया और बाद में ये लड़कियां कृष्ण भगवान की 16हज़ार पटरानियाँ कही जाने लगीं। नरकासुर के वध की ख़ुशी मानाने के लिए लोगों ने दिए जलाये और तभी से नरक चतुर्दशी के दिन दिए जलाने की प्रथा शुरू हो गई।

Narkasur Ka Vadh

दैत्यराज बलि की कथा –

नरक चतुर्दशी की एक और कथा है जिसमे श्री कृष्ण द्वारा दैत्यराज बलि को दिये गये वरदान का उल्लेख है। मान्यता है कि कार्तिक त्रयोदशी से कार्तिक अमावस्या के दौरान भगवान विष्णु ने वामन अवतार में दैत्यराज बलि के सम्पूर्ण राज्य को तीन कदम में नाप दिया था। इसलिए उन्होंने अपना पूरा राज्य वामन भगवान को सौंप दिया। इस कृत्य से प्रसन्न होकर भगवान ने राजा बलि को वरदान मांगने के लिए कहा। तब दैत्यराज बलि ने वरदान स्वरुप यह माँगा है कि त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के दौरान मेरे राज्य में जो भी मनुष्य दीप जलाएं, लक्ष्मी पूजन करे, तथा दीपावली का पर्व मनाये, उसे कभी धन-धान्य की कमी नहीं होनी चाहिये। राजा बलि ने यह भी माँगा कि जो मनुष्य चतुर्दशी के दिन दीपदान करेगा, उसे यमराज कभी याचना नहीं दें। इसी वरदान की वजह से नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाने लगा।

Lord Kalki

और पढ़ें: जानें दीपावली से जुड़ी नरकासुर और भगवान विष्णु की एक अनोखी कथा।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल-

1- कब है नरक चतुर्दशी 2024 ?

नरक चतुर्दशी  2024 की शुरुआत 30 अक्टूबर को सुबह 01 बजकर 15 मिनट से होगा और समाप्ति तिथि और समय 31 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट पर है।

2-नरक चतुर्दशी में किस देवता की पूजा की जाती है ?

मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अतिरिक्त इस दिन भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा होता है। यमराज की पूजा करने से पापों का नष्ट होता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण से सुन्दर रंग व रूप की प्रार्थना करनी चाहिए।

3-नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है ?

पौराणिक काल में नरकासुर नाम का एक दैत्य था जिसने सभी देवी-देवताओं की शांति भंग कर दी थी। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा द्वारा नरकासुर का संहार किया था। नरकासुर का वध कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को होने के कारण इस दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी।

4-नरक चतुर्दशी की पूजा विधि क्या है ?

नरक चतुर्दशी के पावन पर्व पर प्रातः कल उठकर, स्नान करके साफ़ वस्त्र पहनें।स्नान करते समय तिल के तेल से शरीर की मालिश करें। स्नान आदि से निवृत होकर पूजा की तैयारी करें। घर के ईशान कोण में यमराज, कृष्ण भगवान, माता काली, भगवान शिव तथा हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें। सभी देवी-देवताओं की विधि-पूर्वक पूजा करें। कुमकुम-अक्षत का तिलक लगाएं, फूल अर्पित करें, फल अथवा मिठाई का भोग लगाएं, तथा अंत में धूप जलाएं।पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें।

5-नरक चतुर्दशी में यमराज का क्या महत्व है ?

मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना की जाती है। इससे मनुष्य के सर से अकाल मृत्यु का भय टल जाता है। अतः यमराज की पूजा करके लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। यमराज की पूजा करने से पापों का भी नष्ट होता है। इसलिए नरक चतुर्दशी के दिन अपने सभी गलत कार्य के लिए क्षमा याचना करना चाहिए।

यह भी पढ़ें: धनतेरस 2024: इस दिन करें ये विशेष उपाय जिससे घर में आएगी सुख समृद्धि।

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Yashika Gupta

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