
कबीर दास के बारे में-
एक सच्चे समाज सुधारक के रूप में कबीर दास जाने जाते हैं। कबीर दास एक संत और एक महान कवि थे। लोग कबीर दास जी के दोहे सुनकर दोहों से ज्ञान प्राप्त किया करते थे। कबीर दास जी के दोहे संसार में अत्यंत प्रसिद्ध हैं। मुग़ल काल में जब लोग हिन्दू और मुसलमान के नाम से लड़ा करते थे। धर्म उजागर था तब ऐसे माहौल को शांत करते थे और अपने ज्ञान से लोगों को समझाते थे ।
लोग कबीर दास जी को समझ नहीं पाएं कि ये हिन्दू है या मुसलमान। क्योंकि अपना पहनावा कभी सूफियों जैसा रखते थे। कभी वैष्णवों जैसा। अभी भी यह सवाल ज़िंदा है कि कबीरदास जी मुसलमान थे या हिन्दू।
कबीर दास जयंती कब है?
यह जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। कबीर दास जयंती 2022 में 14 जून 2022 को मनाई जाएगी। सबसे ख़ास बात यह है कि इस साल मतलब 2022 में कबीर दास जी की 645वीं जयंती है।
कबीर दास जयंती का महत्व-
लोग कबीर दास जयंती को पर्व के रूप में मनाते हैं। कबीर दास जी ने हिन्दू और मुसलमानो की एकता के लिए बहुत से कार्य किए थे। समाज के भेदभाव को खत्म करने के लिए और लोगों के बीच खुशी लाने के लिए एक कबीरदास जी एक समाज सुधारक के रूप में उभरे। उनकी बातें और वाणी इतनी सच्चाई थी कि चाहे हिंदू हो या मुसलमान सभी लोग उनसे प्रेम करने लगे थे। कबीर दास जी ने गुरु रामानंद से दीक्षा ली थी।
पर लोग कहते हैं कि कबीर दास जी अपने गुरु के बताए हुए मार्ग पर नहीं थे। क्योंकि उनके विचार शैव कुल जैसे थे और वाणी कभी कभी मुसलमानो जैसी थी। कबीरदास जी ने अपने गुरु से अलग मार्ग अपनाया था। कबीरदास जी ने अपना पूरा जीवन काशी में बिताया था। माना जाता है कि काशी में मृत्यु होना आपको स्वर्ग की ओर ले जाता है। मगहर में मृत्यु नरक की ओर ले जाती है। कबीर दास जी काशी में रहते थे पर उन्होंने अपना देह मगहर में त्यागा था। उनकी मृत्यु को लेकर विवाद हुए।
हिन्दू लोग कह रहे थे कि इनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होगा। मुसलमान कह रहे थे मुसलमान रीति से होगा। इसी लड़ाई के चलते उनके शव से चादर हट गयी तो उनके शव पर फूल पड़े हुए थे। आधे फूल हिन्दू धर्म के लोगों ने आधे फूल मुस्लिम धर्म के लोगों ने ले लिए थे। इन्ही आधे फूलों से हिन्दू धर्म के लोगों ने हिन्दू रीति से मुस्लिम धर्म के लोगों ने मुस्लिम रीति से फूलों का अंतिम संस्कार किया था। कबीर दास जी की समाधि और दरगाह मगहर में ही है।
कबीर दास जी के दोहे और उनके अर्थ-
दास जी के दोहे समाज को एक नयी दिशा देते हैं। हम लोग संत कबीर दास जी के दोहे से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। कबीर जी के प्रत्येक दोहे के अर्थ में एक सच्चाई छुपी हुई है।
दोहा-
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिए जो गुर मिलै,तो भी सस्ता जान।।
अर्थ – इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि यह शरीर विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान है। यदि आपको अपना सिर अर्पण करके भी सच्चा गुरु मिलता है तो यह बहुत सस्ता सौदा है।
दोहा-
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
अर्थ- कबीर दास जी इस दोहे में कहना चाहते हैं कि परमात्मा मुझे बस इतना ही दीजिए ,जिससे मेरे परिवार भरण-पोषण हो पाए। जिससे मैं भी अपना पेट भर सकूँ और मेरे द्वार पर आया हुआ साधु- संत भी भूखा ना जाए।
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