
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत क्या है?
हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ पूर्णिमा(Jyeshtha Purnima) का बहुत अधिक महत्व है। ज्येष्ठ माह में आने वाली पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा कहते हैं। ये पूर्णिमा ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा होती है। यह पूजा महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए की जाती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट पूर्णिमा व्रत भी रखते हैं। लोग इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत के दिन महिलाएं पूर्ण रूप से श्रृंगार करके वट के पेड़ की पूजा करती हैं। अपने पति की लम्बी उम्र का वरदान मांगती है। हिन्दू धर्म में यह भी कहा जाता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत रखने से सारे पाप मिट जाते हैं। लोग इस दिन पितरों के लिए दान भी करते हैं। इससे पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत खासकर महिलाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 2023 कब है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 2023 की तिथि 4 जून दिन रविवार को है। ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 2023 के आरम्भ होने का शुभ समय 3 जून को सुबह 11बजकर 16 मिनट से है। ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 2023 समाप्त होने का समय 4 जून को सुबह 9 बजकर 11 मिनट है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा –
ज्येष्ठ पूर्णिमा(Jyeshtha Purnima) व्रत कथा के अनुसार, राजा अश्वपति के घर देवी सावित्री का जन्म हुआ था। राजा ने अपनी पुत्री को बहुत अच्छे से लालन-पोषण किया। जब सावित्री युवा अवस्था में हुई तो राजा को उनके विवाह की चिंता सताने लगी। राजा अश्वपति चाहते थे कि देवी सावित्री को उनके मन के अनुसार वर मिले।इसलिए देवी सावित्री से कहा की तुम अपने अनुसार वर का चुनाव कर लो। सावित्री अपने वर के चुनाव के लिए भ्रमण करने लगी।
एक दिन सावित्री की नजर एक युवक पर पड़ी। जिसका नाम सत्यवान था। सावित्री ने अपने मन में ही सत्यवान को वर चुन लिया। सत्यवान को वर चुनने की बात ऋषि मुनि नारद जी को पता चली। नारद जी ने सावित्री से बोले कि उनका होने वाला पति अल्पायु है। यह बात सुनकर सावित्री ने कहा कि में एक हिन्दू नारी हूं। हिन्दू धर्म के अनुसार एक बार ही पति का चुनाव कर सकते हैं। सावित्री और सत्यवान दोनों ने एक दूसरे से विवाह कर लिया।
एक दिन सत्यवान अपना कार्य कर रहा था। तभी वो बेहोश होकर जमीन पर गिर गया। यह देखकर सावित्री आई और उन्होंने वट के पेड़ की छाँव में अपनी गोद पर लेटा लिया। थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा की यमराज उनके पति के प्राण लेकर जा रहे हैं। वह रोते-बिलखते हुए यमराज के पीछे भागती रही। यह देखकर यमराज ने कहा कि तुम सिर्फ पृथ्वीलोक तक आ सकती हो पाताल लोक पर नहीं। सावित्री ने यह सुनकर उत्तर दिया कि सत्यवान मेरा पति है। पत्नी धर्म यह कहता है कि पत्नी पति का साथ नहीं छोड़ती है। यह सुनकर यमराज प्रसन्न होकर बोले कि में तुम्हारे पति का प्राण तो वापस नहीं कर सकता हूं। पर तुम मुझसे तीन वरदान मांग सकती हो। सावित्री ने पहले वरदान में सास-ससुर के नेत्र को वापस माँगा। दूसरे वरदान में अपने पति का राज्य मांगा।
तीसरे वरदान में सत्यवान के पुत्रों की माँ बनने का वरदान मांगा है। यह सुनकर यमराज चौंक गए। सावित्री ने बड़ी चतुराई से तीसरे वरदान में अपने पति के प्राण वापस मांग लिए थे। यमराज को सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। तभी विवाहित स्त्री अपने पति की लम्बी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा पड़ रही थी। तभी इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कहते हैं।