
भगवान शिव और पार्वती का प्रेम-
हिन्दू शास्त्रों में भगवान शिव और पार्वती का प्रेम अनोखा प्रेम माना गया है। पार्वती पर्वतराज की पुत्री थी। इसलिए इनका नाम पार्वती पड़ा। माता पार्वती जब बड़ी हो गयी तो माता-पिता को विवाह की चिंता सताने लगी। एक दिन नारद मुनि आये। कहा कि पार्वती का विवाह भगवान शंकर से होना चाहिए। शिव जी सभी तरह से पार्वती के लिए योग्य वर हैं।
शिव और पार्वती के विवाह की कथा-
पार्वती ने की कठोर तपस्या-
पुराणों में बताया गया है। महाशिवरात्रि के दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। सभी देवता की इच्छा थी की पार्वती का विवाह भगवान शंकर से हो जाए। माता पार्वती भी शिवजी से विवाह करने के लिए इच्छुक थी। माता पार्वती ने शिवजी से विवाह करने का ठान लिया था। शिव जी से विवाह करने के लिए कठोर तपस्या की। पार्वती की कठोर तपस्या के कारण बड़े-बड़े पर्वत की नींव डगमगाने लगी थी। हर तरफ हाहाकार मच गया था। यह देख शिव जी ने अपनी आँखे खोली। पार्वती जी से निवेदन किया। कि हे पार्वती तुम अपने लिए किसी योग्य राजकुमार को चुन लो। शिव जी ने पार्वती से बताया। एक तपस्वी के साथ रहना कठिन है। अतः तुम्हे मुझसे विवाह नहीं करना चाहिए। लेकिन पार्वती अपनी बात पर अटल थी। यह देखकर शिव जी का मन पिघला और विवाह करने के लिए तैयार हो गए थे।
शिव जी विवाह के लिए हुए तैयार-
पार्वती का अपने प्रति प्रेम देखकर शिव जी विवाह के लिए राजी हो गए थे। विवाह की तैयारियां चलने लगी। कैलाश पर्वत जगमगा रहा था। कैलाश पर्वत पर हर तरफ खुशी का माहौल था। शिव जी चिंतित थे। शिव जी एक तपस्वी थे। पार्वती का हाथ मांगने जाने के लिए परिवार में कोई सदस्य नहीं था। तब उन्होंने निर्णय लिया की। बारात में भूत-प्रेत और चुड़ैलों को अपने साथ ले जाएंगे। जब वो तैयार हो रहे थे। शिव जी को समझ नहीं आ रहा था कैसे तैयार हुआ जाए। तब चुड़ैलों ने शिव जी को भस्म से सजा दिया। और गले में हड्डियों की माला पहना दी।
शिव जी की अनोखी बारात-
इस अनोखी बारात को देखकर पार्वती की माँ और उपस्थित अन्य सदस्य डर के भाग गए। शिव जी को इस रूप में देखकर पार्वती जी की माँ ने पार्वती का विवाह करने से मना कर दिया था।इसके पश्चात पार्वती ने शिव जी से प्रार्थना की। वो सही ढंग और रूप से तैयार होकर आएं। शिव जी खूबसूरत रूप में तैयार होकर आये। उन्होंने दैवीय जल से नहा कर और रेशमी फूलों से सजे। शिव जी का चेहरा चाँद की तरह चमक रहा था।
भगवान शिव जब इस रूप में पहुंचे। तब पार्वती की माँ ने शिव जी को स्वीकार किया। ब्रह्मा जी इस विवाह में सम्मिलित हुए। विवाह समारोह शुरू हुआ। शिव जी और पार्वती जी ने एक दूसरे को जयमाला पहनाई।
शिव जी और पार्वती संपन्न हुआ। यह थी शिव और पार्वती जी की विवाह कथा।
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