शंकराचार्य जी के बारे में-
शंकराचार्य जी ने भारत में चार मठों की स्थापना की थी। इनका पूरा नाम आदि शंकराचार्य है उन्हें जगद्गुरु शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से उन्हें संन्यास में रुचि थी। शंकराचार्य जी का जन्म आठवीं सदी में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को केरल में हुआ था। इनके पिता जी की मृत्यु बचपन में हो गयी थी, जिसके कारण इनकी माँ सन्यासी नहीं बनने दे रही थी। शंकराचार्य भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। हिन्दू संस्कृति जब ख़त्म हो रही थी तब उन्होंने हिन्दू संस्कृति को जाग्रत किया।
शंकराचार्य जयंती की तिथि-
शंकराचार्य जयंती की तिथि 2022 में 6 मई दिन शुक्रवार को है। इसे हिन्दू धर्म में त्योहार के रूप में मनाया जाता है। शंकराचार्य जयंती को लोग बहुत उत्साह से मनाते हैं।
शंकराचार्य जयंती का महत्व-
हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के शंकराचार्य जयंती का अधिक महत्व है। बचपन से ही शंकराचार्य बहुत अधिक प्रतिभाशाली थे। एक बार वो अपनी माँ के साथ नदी में नहाने गए थे तो उन्हें एक मगरमच्छ पकड़ लिया और कहा आप मुझे सन्यांस लेने की आज्ञा दे नहीं तो ये मगरमच्छ मुझे खा लेगा। तब उन्होंने आज्ञा दी थी। उनकी मां हमेशा से ही संन्यास लेने के खिलाफ थी। इनके जन्म को लेकर कई तरह के प्रसंग हैं। कहा जाता है कि एक ब्राह्मण दम्पति को विवाह के कई वर्षों तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। उनकी इस कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने वरदान मांगने को बोला तब उन्होने वरदान में एक ऐसी संतान को मांगा जो इतना प्रसिद्ध हो जाए की उसे दूर दूर तक लोग जाने और वर्षों तक उनका नाम जाना जाए। भगवान शिव ने स्वयं उनके घर जन्म लिया। उनका नाम शंकर पड़ा। बचपन से ही उनके अंदर प्रतिभा थी। उन्होंने 3 वर्ष की आयु में मलयालम भाषा को पढ़ लिया था। 7 वर्ष की आयु में पूरे वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 12 साल की उम्र में सारे ग्रंथों को पढ़ लिया था। 100 से अधिक ग्रंथों की रचना उन्होंने 16 वर्ष की आयु में कर ली थी। इसके बाद वो वैराग के पथ पर चले गए। शंकराचार्य को सर्वोच्च गुरु का पद मिला।शंकराचार्य का देहांत 32 वर्ष की आयु में हो गया।
भारत में शंकराचार्य जी ने 4 मठो की स्थापना की, जिससे हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा मिला। इसलिए शंकराचार्य जयंती का बहुत अधिक महत्व है।