हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से विवाह संस्कार को बहुत पवित्र संस्कार माना जाता है। इस वजह से हिंदू धर्म में यह अपनी खास अहमियत रखता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति की कुंडली और ग्रह आपस में मिलकर कुछ ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करते है। जिनसे व्यक्ति के जीवन में विवाह का योग बनता है। लेकिन यह विवाह योग तब अशुभ साबित होता है। जब व्यक्ति की दूसरी शादी होती है। ज्योतिष की भाषा में इसे व्यक्ति की कुंडली में दो विवाह योग के नाम से जाना जाता है। इस विधि के अनुसार ज्योतिषी व्यक्ति की कुंडली या हाथ देखकर पहले ही पता लगा लेते है। कि इस व्यक्ति की दूसरी शादी होगी या नहीं।
ज्योतिष में दूसरी शादी का क्या है मतलब-
व्यक्ति की कुंडली में विवाह के दो योग का बनना ज्योतिष में दूसरी शादी के नाम से जाना जाता
है। जिसमें व्यक्ति की कुंडली के कुछ भाव और ग्रह जिम्मेदार होते है। जो इस योग का निर्माण करते है। इसके अलावा ज्योतिष समुद्र शास्त्र की इस बात का भी अनुसरण करता है।कि व्यक्ति की कनिष्ठा उंगली के नीचे बनने वाली आड़ी तेड़ी रेखाओं से भी व्यक्ति के भाग्य में दो विवाह के योग बनते है।
क्योंकि हथेली की इस जगह बुध पर्वत स्थित होता है। जो विवाह योग का कारण बनता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस बुध पर्वत पर जितनी रेखाए बनती है। व्यक्ति की शादी उतनी ही बार होती है।
दूसरे विवाह के लिए व्यक्ति की कुंडली के कौन से घर है जिम्मेदार-
यदि कुंडली में दूसरा विवाह लिखा हो तो उसे होने से कोई नही रोक सकता। लेकिन यदि आप पहले ही जान जाएं की आपकी कुंडली में दूसरा विवाह योग । तो सोचिए फिर आपका जीवन कैसा होगा। ज्योतिष शास्त्र बताता है की व्यक्ति का दूसरा विवाह। उसकी कुंडली में कुछ घरों/भावों के कारण भी होता है। उन्हीं की चर्चा नीचे की गई है।
द्वितीय भाव-
-कुंडली का द्वितीय भाव मुख्य रुप से धन से संबंधित है। लेकिन इस भाव को विवाह से जोड़कर भी देखा जाता है।
-द्वितीय भाव में किसी पाप ग्रह जैसे राहु और केतु का होना। व्यक्ति की दूसरी शादी के लिए जिम्मेदार है।
-इस पाप ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति पहली पत्नी की मृत्यु के तुरंत बाद ही दूसरा विवाह कर लेता है।
सप्तम भाव-
-सातवें घर का संबंध विवाह से होता है।
– सातवें घर में शुक्र का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में दो विवाह योग बनाता है।
-इसके अलावा सातवें घर में शुक्र के साथ मिलकर अन्य ग्रह। जैसे चंद्रमा, बुध, गुरु, सूर्य आदि मिलकर भी दो विवाह के योग बनाते है।
– सप्तम और एकादश भाव का एक ही राशि में स्थित होना भी दो विवाह के योग बनाता है।
अष्टम भाव-
– द्वादश की तरह अष्टम भाव में पाप ग्रह के रहने से व्यक्ति का दूसरा विवाह होता है।
-ज्योतिषियों के अनुसार जब शनि सप्तम भाव में होता है और लग्नेश आठवें भाव में। तो व्यक्ति के एक से अधिक विवाह होते है।
-यदि अष्टम भाव अपनी नीच की राशि में हो। तो पहली पत्नी से तलाक की संभावना उतपन्न होती है।
कुंडली में दूसरे विवाह के लिए ग्रह या विवाह के लिए जिम्मेदार ग्रह की क्या है भूमिका-
ज्योतिष शास्त्र की माने तो ग्रह किसी न किसी तरीके से हमें प्रभावित करते है। यह प्रभाव सकारात्मक भी होते है और नकारात्मक भी। आइए जानते है कुंडली में दूसरे विवाह के लिए ग्रह कैसे है जिम्मेदार(विवाह के लिए जिम्मेदार ग्रह)-
मंगल ग्रह-
– ज्योतिष में मंगल को एक आक्रामक ग्रह कहा जाता है। जहां इसके शुभ प्रभाव होते है। तो कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होते है। जो विवाह जैसे रिश्तों पर प्रतिकुल असर प्रकट करता है।
-मंगल का सातवें घर के स्वामी के साथ मेल तलाक के भाव पैदा करता है।
-तो वहीं मंगल की लग्नेश स्थिति दूसरे विवाह की संभावना भी बनाती है।
– इसके अलावा मंगल आठवें घर के स्वामी के साथ विराजमान हो। लेकिन आठवां घर का स्वामी अपनी नीच राशियों में स्थित हो। तो यह व्यक्ति की कुंडली में बहुविवाह के योग उतपन्न करता है।
राहु और केतु ग्रह-
-यह तो सभी को मालूम है ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को पाप ग्रह कहा जाता है।
– अत: राहु और केतु का बुरी अवस्था में होना व्यक्ति की कुंडली में दूसरा विवाह लेकर लाता है।
-खासकर सपत्म भाव में इन पाप ग्रह का होना पहले विवाह में तलाक की संभावनाएं पैदा करता है।
सूर्य और चंद्रमा ग्रह-
-सपत्म भाव में सूर्य और चंद्रमा का होना एकस्ट्रा मैरिटल अफेयर की गुंजाईश पैदा करता है।
-जिस कारण पहली शादी में तलाक होता है।
-यदि यह दोनों ग्रह व्यक्ति की कुंडली के सपत्म, दशम या लग्न भाव में हो। तो जातक का दूसरा विवाह होना तय है।
शनि ग्रह-
-शनि की ढ़ैय्या और साढ़ेसाती ऐसे प्रभाव पैदा करती है। कि व्यक्ति जितना भी रोक लें। उसका तलाक होकर ही रहता है।
– इसकी वक्र दृष्टि भी व्यक्ति की कुंडली में बहुविवाह के योग बनाती है।
शुक्र ग्रह-
-शुक्र को सौंदर्य, ऐश्वर्य और विलासिता का कारक माना जाता है।
-इस बात से ही पता चलता है कि शुक्र के बुरे प्रभाव से व्यक्ति विलासी होता है और एक संबंध में नहीं रह सकता।
– जिसका परिणाम अवैध संबंध होता है। जिससे व्यक्ति का तलाक निश्चित रूप से होकर ही रहता है।
-इसके साथ ही व्यक्ति के सातवें भाव में तुला राशि के साथ शुक्र का होना भी दो विवाह के योग दर्शाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
1. कुंडली में विवाह का योग कब बनता है?
2. किन देवताओं की पूजा करने से व्यक्ति का विवाह समय पर संपन्न होता है?
3. दो विवाह योग से आप क्या समझते है?
4. बहु विवाह के लिए कौन सा कारक जिम्मेदार है?
5. अचानक धन लाभ के लिए कौन सा ग्रह जिम्मेदार है?
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