
आषाढ़ी एकादशी क्या है?
एकादशी प्रत्येक माह में दो बार पड़ती है। शुक्ल पक्ष एकादशी और कृष्ण पक्ष एकादशी। आषाढ़ माह में पड़ने वाली एकादशी को ‘आषाढ़ी एकादशी’ कहते हैं। आषाढ़ी एकादशी को कई नामों से जाना जाता है। इसे देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं। यह एकादशी भगवान विष्णु समर्पित होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि से की जाती है। इस दिन से चातुर्मास का आरम्भ होता है।
आषाढ़ माह का समय भगवान विष्णु का शयन काल माना जाता है। पुराणों के अनुसार माना जाता है। कि भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसी कारण आषाढ़ी एकादशी को ‘हरिशयनी एकादशी’ भी कहते हैं। यह एकादशी जून या जुलाई माह में पड़ती है। हिन्दू धर्म में इस दिन को बहुत धूमधाम से पर्व के रूप में मनाते हैं। भारत के दक्षिण राज्यों में इसे ‘तोली एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। आषाढ़ी एकादशी के दिन व्रत रखना बहुत शुभ माना जाता है।
आषाढ़ी एकादशी 2022 की तिथि और समय-
2022 एकादशी की तिथि 10 जुलाई दिन दिन रविवार को है। आषाढ़ी एकादशी प्रारम्भ होने का समय सुबह 5 बजकर 30 मिनट है। एकादशी समाप्त होने का समय सुबह 8 बजकर 17 मिनट है। आषाढ़ी एकादशी का शुभ समय की अवधि 2 घंटा 46 मिनट ही है।
आषाढ़ी एकादशी पूजा विधि-
- इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
- इस दिन प्रातः काल उठकर स्नान करना चाहिए।
- पूजा ग्रह की साफ़ सफाई अवश्य करनी चाहिए।
- पीला कपड़ा आशन पर बिछाकर विष्णु जी की मूर्ति को विराजित करना चाहिए।
- भगवान विष्णु की मूर्ति पर पीले वस्त्र, पीला चंदन और पिले रंग के फूल अवश्य चढ़ाने चाहिए।
- भगवान विष्णु के समक्ष पान और सुपारी अर्पित करके दीप या धूप से आरती करनी चाहिए।
- पूजा करने के बाद दान करना चाहिए और दीन दुखियों को भोजन कराना चाहिए।
- स्वयं भी फलाहार को ग्रहण करना चाहिए।
आषाढ़ी एकादशी की कथा-
मान्धाता नामक एक राजा थे। जिनके राज्य के लोग सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते थे। एक समय आया कि राज्य में 3 वर्ष तक वर्षा नहीं हुई। जिससे पूरे राज्य में अकाल पड़ गया। इससे चिंतित होकर राजा समाधान के लिए भटकने लगे। एक दिन राजा अंगिरा नामक ऋषि के आश्रम पहुंचे। राजा की यह चिंता और परेशानी देखकर ऋषि ने आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखने को कहा। मान्धाता राजा ने राज्य में वापस लौटकर पूरे विधि विधान से व्रत को किया। इस व्रत राजा का में दोबारा से वर्षा हुई। राज्य में फिर से खुशहाली का समय वापस आ गया। तभी आषाढ़ी एकादशी को पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आषाढ़ी एकादशी का महत्व-
आषाढ़ी एकादशी को भगवान विष्णु का शयन काल कहा जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन चौमासे का आरम्भ होता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार मास तक शयनकाल में रहते हैं। इस समय विवाह सम्बन्धी और अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। इस अवधि में तपस्वी और साधु भ्रमण नहीं करते हैं। ये लोग एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। माना जाता है कि संसार के सभी तीर्थ इन चार महीनों में ब्रज आकर निवास करते हैं। इस समय ब्रज की यात्रा करना शुभ माना जाता है। हिन्दू धर्म में आषाढ़ी एकादशी का बहुत महत्व है।