भारतीय पर्वों में छठ पूजा का पर्व प्रमुख माना जाता है। पूरे देश में छठ पूजा को धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा की शुरुआत दिवाली के छठे दिन से होती है और 4 दिन तक इस पर्व आयोजन होता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में मुख्य रूप से मनाया जाता है। इस दिन छठ मैया और सूर्य देव की पूजा की जाती है। छठ पूजा का त्योहार 4 चरण में पूरा होता है। पहला चरण नहाय-खाय, दूसरा चरण खरना, तीसरा चरण डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देना और चौथा चरण उगते हुए सूर्य अर्घ्य देना है। यह छठ पूजा के 4 भाग हप्ते हैं। छठ पूजा पर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाता है इसलिए इसे षष्ठी व्रत के नाम से भी जानते हैं।
मान्यता के अनुसार छठ पूजा के दिन छठी मैया की पुरे विधि-विधान से पूजा करने से घर में सुख- वास होता है। परिवार के मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही साथ मान-सम्मान बढ़ता है और धन-धान्य की होती है। अधिकतर महिलाएं व्रत रखती हैं और संतान की दीर्घायु की कामना करते हैं।
छठ पूजा 2023 कब है?
हिंदी कैलेंडर के अनुसार छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2023 में छठ पूजा 19 नवंबर दिन रविवार को है।
छठ पूजा की सम्पूर्ण तिथि-
नहाय-खाय: 17 नवंबर 2023
खरना : 18 नवंबर 2023
डूबते सूर्य को अर्घ्य: 19 नवंबर 2023
उगते सूर्य को अर्घ्य: 20 नवंबर 2023
छठ पूजा 2023 का शुभ समय-
कार्तिक मास की षष्ठी तिथि का आरंभ 2023 में 18 नवंबर दिन शनिवार को सुबह 9 बजकर 18 मिनट है। छठ पूजा की तिथि समाप्त होने का समय 19 नवंबर 2023 को दोपहर 7 बजकर 23 मिनट है।
नहाय-खाय और खरना क्या है?
- छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय होता है।
- इस पर्व की शुरुआत इसी दिन से होती है।
- इस दिन घर की पूरी तरह से साफ-सफाई की जाती है।
- नहाय-खाय के दिन चने, साग और चावल मुख्य रूप से खाया जाता है।
- नहाय-खाय के अगले दिन खरना मनाया जाता है।
- यह छठ पूजा का दूसरा दिन होता है और इस दिन व्रत रखा जाता है।
- शाम होने पर गुड़ की खीर को ग्रहण किया जाता है।
- खरना के अगले दिन से 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है।
छठ पूजा के लिए सामग्री-
- बांस की दो टोकरी
- साड़ी और धोती
- बांस या पीतल का सूप
- गिलास,लोटा और थाली
- गंगाजल और दूध
- चौकी और केले का पत्ता
- सिंदूर, धूपबत्ती और कुमकुम
- मिठाई,शहद या गुड़
- गेहूं,चावल और चावल का आटा
- एक दर्जन मिट्टी के दीपक
- पान,सुपारी और गन्ना
- शकरकंदी, केला और सेब
- सिंगाड़ा,मूली और अदरक का पौधा
छठ पूजा की कहानी-
पौराणिक कथा के अनुसार छठ पूजा की कहानी इस प्रकार है। एक बार प्रियवत नाम का एक राजा हुआ करता था। राजा अपनी पत्नी के साथ सुखी और समृद्ध जीवन व्यतीत कर रहा था। परन्तु राजा और रानी की कोई संतान नहीं था। इस कारण राजा कभी कभी अत्यंत दुखी हो जाता था। महर्षि कश्यप ने राजा का दुःख देखकर राजा को यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के पश्चात रानी गर्भवती हुई और उन्होंने एक संतान को जन्म दिया। परन्तु संतान पैदा होते ही मृत्यु को प्राप्त हो गयी। इसी कारण खुशी का माहौल दुःख में बदल गया।
राजा- रानी अत्यंत दुखी हुए और उनके पास अन्य कोई रास्ता नहीं बचा था। एक दिन राजा ने आकाश में एक देवी की छाया देखी। वह देवी भगवान ब्रह्मा की पुत्री षष्ठी थी। षष्ठी देवी निःसंतान लोगों को संतान के सुख का आशीर्वाद देती है और बच्चों की रक्षा करती हैं। राजा ने देवी से अपनी संतान को वापस देने को कहा। देवी ने आशीर्वाद दिया और राजा को संतान की प्राप्त हुई। इसी कारण देवी षष्ठी की पूजा पूरे विधि- विधान से की जाती है। देवी षष्ठी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
छठ पूजा का महत्व-
हिन्दू धर्म में छठ पूजा का अत्यधिक महत्व होता है। इस दिन कई और विशेष प्रकार के मीठे व्यंजन बनाये जाते है। इस पर्व को झारखंड,बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य भगवान की पूजा विशेष रूप से की जाती हैं। क्योंकि पृथ्वी पर रह रहे लोगों का आधार सूर्य ही है। इस दिन छठी मैया की पूजा करने से संतान के स्वास्थ्य की रक्षा करती हैं। साथ ही साथ निःसंतान दम्पतियों को संतान का सुख प्राप्त होता है।
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