क्या है पंचांग ?
शुभ कार्यों में पंचांग का महत्व(Panchang ka Mahatv) बहुत अधिक है। हिन्दू धर्म में शुभ कार्य मुहूर्त से किये जाते हैं। शुभ मुहूर्त पंचांग द्वारा ही निकाला जाता है। प्राचीन हिन्दू कैलेंडर को पंचांग कहा जाता है। पंचांग पांच अंगों से मिलकर बना है तभी इसे पंचांग कहते हैं। पंचांग का अर्थ है पांच + अंग = पंचांग। ये संस्कृत शब्दों से बनाया गया है। पंचांग समय को रोकने का एक तरीका है। पंचांग ज्योतिष की जानकारी के अनुसार समय,तिथि और शुभ मुहूर्त को एक सूचीबद्ध तरीके से बनाया जाता है। ग्रह और राशि और खगोलीय पिंड के अनुसार भी पंचांग को बनाया जाता है क्योंकि पंचांग में इसका बहुत अधिक महत्व है। पांच अंगों के आधार पर बताया जाता है कि कौन से दिन में शुभ मुहूर्त कौन से दिन में अशुभ। पांच अंग निम्नलिखित हैं- नक्षत्र, तिथि,योग.करण और वार (शुभ दिन)।
पंचांग के पांच अंग कौन से हैं?
इंस्टाएस्ट्रो के ज्योतिष आज आपको बताएंगे कि पंचांग के पांच अंग कौन से हैं? और ये पंचांग में किस प्रकार से उपयोगी हैं।
नक्षत्र –
पहला अंग पंचांग का नक्षत्र होता है। ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 तरह के होते हैं। जो सितारों,नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति को बताते हैं वो वैदिक ज्योतिष होते हैं। पंचाग को पढ़ने के लिए नक्षत्र का बहुत अधिक महत्व है। ज्योतिष के अनुसार तो 27 नक्षत्र होते हैं। पर किसी शुभ कार्य को करने के जब मुहूर्त निकालते हैं तो 28वां नक्षत्र को भी माना जाता है। यह 28वां नक्षत्र अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। अभिजीत नक्षत्र का उपयोग ग्रह प्रवेश के मुहूर्त, विवाह सम्बंधित कार्य के लिए, नया वाहन खरीदने के लिए और शिक्षा की शुरुआत के लिए किया जाता है
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तिथि-
पंचांग का दूसरा अंग तिथि होता है। पंचांग के अनुसार 16 तरह की तिथियां होती हैं। हिंदी कैलेंडर का प्रत्येक माह दो भागों में होता है। एक भाग शुक्ल पक्ष कहलाता है दूसरा भाग कृष्ण पक्ष कहलाता है। प्रत्येक माह में दो प्रमुख तिथियां होती हैं पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या महीने में जरूर एक बार आती है। पूर्णिमा और अमावस्या के बीच के समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं। अमावस्या और पूर्णिमा के बीच के समय को कृष्ण पक्ष कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि कोई भी शुभ कार्य कृष्ण पक्ष में नहीं किया जाता है। क्योंकि इस समय अंधकार की उपस्थिति रहती है। चंद्र देव कमजोर होते हैं और अंधकार शक्तिशाली होता है। इसलिए विवाह से संबंधित सभी कार्य शुक्ल पक्ष में होते हैं।
योग-
योग पंचांग का तीसरा अंग है। योग तब बनता है जब सूर्य, चन्द्रमा निरायण देशांतर होते हैं। योग के कारण किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। पंचांग में कुल 27 योग होते हैं। ये योग निम्नलिखित हैं। विश्वकुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभना, अतिगंडा, सुकाराम, धृति, शूल गंडा, वृद्धाः, ध्रुव, व्यघाटः,हर्षना, व्रज आदि।
करण-
करण पंचांग का चौथा अंग है। तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। एक तिथि में दो करण होते हैं। इन दो करणों के अंदर कुल 11 करण होते हैं। जो चार महीने में सिर्फ एक बार करण आता है उसे स्थिर करण कहते हैं। 4 स्थिर करण होते हैं। जिनका नाम किमस्तुघना, चतुष्पदा, शकुनि और नाग।
शेष सात करण चलते रहते हैं। ये एक दूसरे का अनुसरण करते हैं। जिनके नाम निम्नलिखित हैं-बावा, बकलावा, कौलव, तैतिया, गारा, वैनिजा और विष्टि।
वार-
पंचांग का अंतिम और पांचवा अंग है वार। हिन्दू कैलेंडर में जो दिन होते हैं उसे वार कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि एक सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय के बीच का समय वार कहलाता है। सात तरह के वार होते हैं – रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार,शुक्रवार और शनिवार।
शुभ कार्य में पंचांग का महत्व ( Panchang ka Mahatv)-
शुभ मुहूर्त देखने के लिए पंचांग की आवश्यकता होती है। पंचांग के बिना हिन्दू धर्म में शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। पंचांग के अनुसार शुभ कार्य करने से विशेष लाभ होता है और भगवान की कृपा बनी रहती है। सही करण में कार्य करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।