
कन्यादान क्या होता है?
हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान कई तरह की रस्में होती हैं। रस्मों को निभाने के बाद ही विवाह को संपन्न माना जाता है। उसमे से एक रस्म कन्यादान भी है। कन्यादान का मतलब होता है। कन्या का दान। परन्तु कन्यादान का मतलब वास्तव में कन्या का दान करना नहीं होता है। कन्या दान का सही अर्थ वेद पुराणों में बताया गया है। हिन्दू धर्म में कन्यादान की रस्म को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
हिन्दू शास्त्रों में कन्या दान को महादान माना जाता है। इस रस्म में भावनाओं का संगम होता है। इस रस्म का पल माता-पिता के लिए अत्यधिक कठोर होता है। कन्यादान की रस्म माता पिता करते हैं। कन्यादान की रस्म में पिता अपनी बेटी का हाथ उसके जीवनसाथी को देता है। यह पल अत्यधिक भावुक होता है। मान्यता के अनुसार कन्यादान करने वाले माता-पिता भाग्यशाली होते हैं। कि उन्हें कन्यादान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। माना जाता है कन्यादान से पुण्य मिलते हैं। क्या आपको कन्यादान का सही अर्थ पता है। अगर नहीं तो आज इंस्टाएस्ट्रो आपको बताएगा। कन्यादान का सही अर्थ और कन्यादान का महत्व।
कन्यादान का सही अर्थ-
महाभारत में श्री कृष्ण ने कन्यादान की परिभाषा दी है। जो श्री कृष्ण ने सुभद्रा के विवाह के समय कही थी। प्राचीन समय में गन्धर्व विवाह करते थे। श्री कृष्ण ने अर्जुन और सुभद्रा का गन्धर्व विवाह कराया था। परन्तु बलराम इस विवाह के खिलाफ था। बलराम ने श्री कृष्ण से कहा। जिस विवाह में कन्यादान नहीं होता है। वह विवाह अधूरा माना जाता है। श्री कृष्ण ने बलराम की इस बात का विरोध किया और कहा। कन्यादान का सही अर्थ कन्या का दान करना नहीं होता है। बल्कि कन्या का आदान करना होता है। कन्यादान की रस्म के समय पिता अपनी कन्या का हाथ उसके जीवनसाथी के हाथ में देता है। कहता है आज से में अपनी बेटी की जिम्मेदारी दे रहा हूँ। ना कि में अपनी कन्या को दान कर रहा हूँ।
कन्यादान एक महादान-
- इस परंपरा का आरम्भ प्रजापति दक्ष से हुआ था।
- हिन्दू धर्म के अनुसार कन्यादान को माता-पिता के लिए स्वर्ग का मार्ग कहलाता है।
- कन्यादान को महादान का सूचक बताया गया है।
- वर और वधू दोनों के पक्षों में नया जीवन देता है।
- हिन्दू धर्म में वर को भगवान विष्णु और वधू को देवी लक्ष्मी के बराबर माना जाता है।
कन्यादान का महत्व-
- हिन्दू धर्म में कन्यादान की रस्म को महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है।
- विवाह कन्यादान के बिना अधूरा माना जाता है।
- कन्यादान की रस्म माता-पिता द्वारा की जाती है।
- इस रस्म के बिना सनातन धर्म में विवाह पूर्ण नहीं होता है।
- कन्यादान की रस्म के बाद माता-पिता कन्या की जिम्मेदारी उसके जीवनसाथी को सौंप देते हैं।
- यह परंपरा पूरे रीति-रिवाजों के साथ निभाई जाती है।
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