हमारे धर्म शास्त्रों में भगवान शिव और देवी सती के प्रेम के बारे में काफी विस्तार से वर्णन किया गया है। भगवान शिव को देवी सती के बिना शव की संज्ञा दी जाती है। मतलब सती के बिना शिव अधूरे है। सती को शिव की अर्धांगिनी(आधा अंग) भी इस कारण ही कहा जाता है। पुराणों में राजा दक्ष की दो पत्नियों का जिक्र किया गया है- प्रसूति और विराणी। प्रसूति से राजा दक्ष की 24 पुत्रियां थी और वीराणी से 60 कन्याएं। इस तरह राजा दक्ष की कुल 84 कन्याएं थी। सभी कन्याएं विशेष गुण और प्रतिभा से संपन्न थी। फिर भी राजा दक्ष पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे।
वह एक ऐसी पुत्री चाहते थे जो शक्ति का रूप हो और तीनों लोकों पर जीत हासिल करने वाली हो। इसी पुत्री की कामना से प्रजापति दक्ष ने दिन रात भगवती को प्रसन्न करने लिए तपस्या करना शुरू कर दिया। दक्ष की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ भगवती ने दक्ष के घर में सती के रूप में जन्म लिया जो आघा शक्ति का ही एक रूप है।
आखिर क्यों इतनी अनोखी है शिव-सती की प्रेम कहानी जानने के लिए एक नज़र डालिए इन बिंदुओं पर-
- सती रूप में जन्मी माँ भगवती प्रजापति दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अनोखी थी। जैसे जैसे सती अपनी बाल्यावस्था को पीछे छोड़कर अपनी य़ुवावस्था में बढ़ रही थी। तो दक्ष को सती के विवाह की चिंता सताने लगी।
- जब सती विवाह योग्य हुई तो दक्ष ने अपने पिता ब्रह्माजी से सती के विवाह के विषय के बारे में बात की और उनसे सलाह मांगी की इस पूरे संसार में ऐसा कोन है जो सती के लिए उसके जैसा गुणवान, प्रतिभावान और योग्य हो। दक्ष की बात सुनने के बाद ब्रह्मा जी ने दक्ष को भगवान शिव के बारे में बताया।
- ब्रह्मा जी ने दक्ष से कहा कि इस पूरे संसार और ब्रह्मांड़ के रचियता शिव है। शिव आदि पुरूष है और सती आदिशक्ति का रूप है। दोनो एक दूसरे के पूरक है और शिव से ज्यादा योग्य वर सती के लिए ओर कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए बिना कोई देरी किए आपको सती का विवाह शिव से कर देना चाहिए।
ऐसे हुआ शिव- सती का विवाह संपन्न-
सती के लिए वर खोजना-
दक्ष के मन में सती के लिए योग्य वर के रूप में भग्वान विष्णु का ही ख्याल आया था। वो सती का विवाह अपने अराध्य भग्वान विष्णु से करना चाहते थे। दक्ष को लगा ब्रह्मा जी भी सती के लिए श्री विष्णु के नाम का चयन करेंगे लेकिन ब्रह्मा जी ने इसके उल्ट शिव को लिए सती के लिए योग्य वर कहा और सती का विवाह शिव से करने का सुझाव दिया। दक्ष ने ब्रह्मा जी कि बात पर ऐसे तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी पर वो ब्रह्मा के सुझाव को भी नहीं मानना चाहते थे क्योंकि दक्ष को शिव का रहन-सहन, वेशभुषा पसंद नहीं थी।
शिव के बारे में दक्ष की विचारधारा-
दक्ष शिव को आधा नंगा फकीर, श्मशान में रहने वाला अघोरी, जंगल में रहने वाला और दीक्षा मांगकर खाने वाला मानते थे। उन्हें किसी भी तरह से शिव सती के लिए योग्य नहीं लगते थे इसलिए दक्ष ने सती का स्वंयर करवाने का फैसला किया। लेकिन इस स्वयंवर में शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था।स्वयंवर में संसार के हर कोने से प्रतिभा संंपन्न राजा-महाराओं ने हिस्सा लिया लेकिन सती जो शिव से मन ही मन प्रेम करती थी और शिव को अपना सबकुछ मान चुकी थी।
सती का विवाह शिव से-
देवी सती ने स्वयंवर में किसी ओर की तरफ ध्यान न देकर स्वयंवर में रखी भगवान शिव की मूर्ति को ही वरमाला पहनाकर शिव को अपने पति के रूप में वरण कर लिया जिसके बाद भगवान शिव वहां प्रकट हुए और देवी सती को अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार कर लिया। स्वयंवर में आए सारे देवता और अतिथियों ने पूरे विधि-विधान से सती और शिव का विवाह संपन्न कराया। विवाह संपन्न होने के बाद शिव सती को लेकर अपने आवास कैलाश चले गए। प्रजापति दक्ष को यह सब अपना अपमान लगा इसलिए दक्ष ने अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली।
सती का आत्मदाह और वीरभद्र क्रोध-
अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से प्रजापति दक्ष ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें समस्त देवतागण और मुख्य लोगों को आमंत्रित किया गया लेकिन सती को इस आयोजन की कोई सूचना भी नहीं दी गई। फिर भी सती इस यज्ञ में जाने की जिद्द करने लगी। बहुत समझाने के बाद भी देवी सती ने शिव की बात नहीं मानी और यज्ञ में पहुंच गई। सती के बिन बुलाए आने पर दक्ष ने सती का अपमान तो किया ही लेकिन जब दक्ष ने शिव का अपमान किया तो सती को क्रोध आ गया। यज्ञ में उपस्थित सभी ने देवी सती का क्रोध देखा। सती का क्रोध इतना बढ़ा की सती ने अपने पत्निधर्म को बचाने के लिए सती ने यज्ञ की अग्निकुण्ड़ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। जब यह सूचना भगवान शिव तक पहुंचि तो वह बहुत गुस्से में आ गए।
शिव का गुस्सा इतना बढ़ा कि उन्होंने अपने एक रूप वीरभद्र को दक्ष का वध करने के लिए भेज दिया। जैसे ही यह बात दक्ष के कानों में पड़ी वह अपनी प्राणों की रक्षा के लिए यहां वहां भागने लगे और समस्त देवताओे से सहायता मांगने लगे पर वीरभद्र के क्रोध को शांत कराना किसी के वस की बात नहीं थी। वीरभद्र क्रोध की अग्नि में जलता हुआ दक्ष के महल तक पहुंच गया और दक्ष के सर को धड़ से अलग करने के बाद वीरभद्र का क्रोध शांत हुआ। अपने पति की ऐसी हालत देखकर दक्ष की पत्नि ने शिव से प्रार्थना कि की वह दक्ष को क्षमा करें और दक्ष को वापस जीवनदान दें।
एक पत्नि की प्रार्थना पर शिव ने दक्ष को बकरे का सिर लगाकर दक्ष को जीवनदान दीया। सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव ने वैराग्य को अपना लिया। शिव की यह हालत देखकर सभी देवता चिंता में पड़ गए। इसलिए सभी देवताओं ने माँ दुर्गा से प्रार्थना कि की वह पार्वती का रूप लेकर फिर शिव के जीवन में आए। माँ दुर्गा ने सभी देवताओं की इच्छा को ध्यान में रखते हुए माँ दुर्गा ने हिमाचल के राजा पर्वत के घर में पार्र्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती की तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। अन्त में सभी देवताओं ने मिलकर शिव का विवाह पार्वती के साथ संपन्न कराया।
हर लड़की चाहती है शिव के जैसा वर-
अक्सर प्यार का नाम लेते ही रोमियों-जुलियट, हीर-राँझा सोनी-महिवाल, जैसी कुछ प्रेमी जोड़ों के नाम ही हर किसी के दिमाग में आते है, लेकिन शिव-सती की प्रेम कथा ऐसी है जिसे जाहिर करने की जरूरत नहीं है। शिव-सती का प्रेम इतना अनोखा और पवित्र है कि ज्यादातर लड़कियां भगवान शिव की पूजा-अर्चना और व्रत इसलिए रखती है ताकि उन्हें अपने जीवनसाथी के रूप में भगवान शिव जैसा जीवनसाथी मिल सके। भगवान शिव की पूजा के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए शिवरात्रि का दिन बहुत अच्छा माना जाता है।
इस दिन व्रत करने से न सिर्फ लोगों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है, बल्कि भगवान शिव के भक्तों पर शिव की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है। इसके अलावा भगवान शिव ही ऐसे है जो निराकार लिंग और मूर्ति दोनों के रूप में पूजे जाते है। जहां शिव का अर्थ- परम कल्याणकारी है तो वहीं लिंग का अर्थ होता है सृजन। शिव के वास्तविक स्वरूप से उत्पन्न हुए शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
1. आखिर कैसे है शिव और शक्ति एक-दूसरे के पूरक?
2. क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि?
3. किन किन नामों से जाने जाते है भगवान शिव?
4. शिव को महाकाल क्यों कहा जाता है?
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शिवलिंग के पीछे की कहानी और भगवान शिव के बारे में अनसुने किस्सों के बारे में जानने के लिए बात किजिए हमारे इंस्टाएस्ट्रों के ज्योतिषी से।