
सावन कांवड़ यात्रा-
सावन का महीना भोलेनाथ का प्रिय महीना माना जाता है। इस वर्ष में सावन की शुरुआत 14 जुलाई से हो रही है। सावन के आरंभ होते ही कावड़ यात्रा का आयोजन होता है। इस यात्रा में शिवलिंग पर जल अर्पित किया जाता है। शिव जी की कांवड़ तैयार किया जाता है।
आज हम इस लेख में जानेंगे। क्या है कांवड़ यात्रा? कांवड़ के कितने प्रकार हैं? कांवड़ यात्रा के नियम और क्या है कांवड़ पौराणिक कथा?
क्या है कांवड़ यात्रा?
सावन में भक्तों द्वारा कावड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है। यह यात्रा शिव जी को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। इस यात्रा में लाखों भक्त हरिद्वार से गंगोत्री धाम की पदयात्रा करते हैं। इन तीर्थ स्थलों से लोग कांवड़ में जल भरकर अपने कंधों पर लाते हैं। यह जल शिवजी पर अर्पित किया जाता है। इसलिए इसे कांवड़ यात्रा कहते हैं। यह यात्रा सावन माह में आरम्भ होती है। इसी वजह से सावन कांवड़ यात्रा भी कहलाती है। इस वर्ष कांवड़ यात्रा 14 जुलाई से शुरू होगी।
कांवड़ के कितने प्रकार हैं?
आइये जानते हैं कांवड़ के प्रकार। कांवड़ के तीन प्रकार होते हैं।कांवड़ यात्रा के दौरान प्रयोग किये जाते हैं।
डाक कांवड़-
इस कांवड़ को सबसे कठिन कांवड़ माना गया है। डाक कांवड़ में एक निश्चित समय में जल लेकर भगवान शिव को अर्पित करना होता है। यह कांवड़ 20 घंटे से अधिक समय की हो सकती है। पर तय समय में ही भक्तों को शिव मंदिर पर जलाभिषेक करना होता है। डाक कांवड़ की मान्यता है। अगर यह कांवड़ हाथ से छूट जाए। या फिर कांवड़ लेकर चलने वाला व्यक्ति रुक जाए। तब डाक कांवड़ खंडित मानी जाती है।
झूला कांवड़-
यह कांवड़ प्रसिद्ध कांवड़ है। सावन कांवड़ यात्रा के दौरान अधिकतर इसी कांवड़ का प्रयोग किया जाता है। इस कांवड़ की ख़ास बात यह है। झूला कांवड़ को बुजुर्ग, बच्चे और महिला भी उठा सकती हैं। आप कांवड़ यात्रा के दौरान झूला कांवड़ को रख कर आराम भी कर सकते हैं। पर आराम करने के बाद आपको पुनः शुद्ध होना पड़ता है।
खड़ी कांवड़-
सावन कांवड़ यात्रा में कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर आते हैं। यह कांवड़ किसी सहयोगी की मदद से लायी जाती है। जब व्यक्ति आराम करता है। तब सहयोगी खड़ी कांवड़ को अपने कंधे पर रख लेता है।
कांवड़ यात्रा के नियम-
- कांवड़ यात्रा के दौरान संकल्प शक्ति का होना अति आवश्यक है।
- इस यात्रा के दौरान भक्तों को किसी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए।
- कांवड़ को स्पर्श करने से पहले स्नान करना अति आवश्यक है।
- इस यात्रा के दौरान चमड़े से बानी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
- कांवड़ यात्रा के समय मांसाहारी भोजन को नहीं खाना चाहिए।
- इस यात्रा के दौरान पैदल चलना चाहिए।
कांवड़ यात्रा की पौराणिक कथा-
आइये जानते हैं कांवड़ यात्रा की पौराणिक कथा। कथा के अनुसार। देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। इस समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। जिसमे से एक हलाहल विष भी निकला था। यह हलाहल विष से संसार के नष्ट होने का भय था। सृष्टि की रक्षा के लिए शिव जी ने हलाहल विष को पी लिया था। पर विष को अपने गले के नीचे नहीं उतारा था। इसके कारण शिव जी नीले पड़ गए थे। इसके पश्चात रावण कांवड़ से गंगा जल लेकर आया। जिससे शिव जी को विष से राहत मिली थी। तभी कांवड़ यात्रा का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है।
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