
वय छोटी सोचूं वळे , किणविध होसी काम ।।
दशरथ राजन दाखवे , अपणी बात युं आम ।।
बालक दोऊ बालवय , अर हैं अबोध असुर ।।
रदे सोच मोकूं रहे , दिल नह चाहे दूर ।।
कछू फिकर ना कीजिये , मानो बात महीप ।।
मीढ़ न आवे माहरी , शूरो अवर समीप ।।
असुरां मारण आविया , आप जनम धर ईश ।।
भेजो इण कज्ज भूपति , आप देय आशीष ।।
दरबारी सह दाखवे , जिका राम भल जाय ।।
मुख सूं कहो झट महपति , ओही बड़ो उपाय ।।
रजा दिरावो राजवी , दसरथ भूप दयाळ ।।
जगन सिद्ध होवे जदे , राम होय रखवाळ ।।
दशरथ आज्ञा देवतां , रदे धरी रघुनाथ ।।
लखन संग में लेयके , चले रिषीवर साथ ।।
जगन रिषी करतां जिका , असुर बिगाड़ण आय ।।
रखोपा करवा राम ने , लखमण संगहु ल्हाय ।।
साथ कुंवर दो शोभता , ओपे वीर अपार ।।
संग रिषी ले चालिया , केशव लखन कुमार ।।
राकस आवत रोळिया , महा वीर झट मार ।।
सम्पूर्ण यज्ञ किनो सही , क्षत्रिय असुर संहार ।।
विदेही इम विचारिके , सबको देत सुनाय ।।
सीय परणावूं चाव सूं , मुहरत शुभ रे मांय ।।
जनक हुकम दियो जिका , तेड़ाय द्विज तमाम ।।
स्वयम्वर रचणो सिय को , हिये तणी मों हांम ।।
सोलह वरसां सीतवा , अब नह रही अबोध ।।
इण कारण म्हें आदरी , सुन्दर वर की शोध ।।
वात युं जनक विचारके , हिय रहयो हरखाय ।।
जगन रचंतां जानहू , इत कई शूर आय ।।
सुर जोधा के सांमरथ , आसी भूप अथाग ।।
सो नर परणे सीय को , भल होसी जिण भाग ।।
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