जैन धर्म में कई तरह के पर्व मनाये जाते हैं। जिनमे से एक पर्युषण पर्व भी है। जैन धर्म के त्यौहार में यह प्रमुख है। जैन धर्म को दो संप्रदायों में बांटा गया है। श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय। श्वेताम्बर सम्प्रदाय का मुख्य पर्व पर्युषण पर्व होता है। इसमें विशेषकर व्रत रखा जाता है। जिसे यथाशक्ति उपवास कहते हैं।यह 8 दिन तक चलते हैं। यह जैन धर्म के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लिए यह पर्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
पर्युषण पर्व कब है?
यह पर्व श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लोग 8 दिन तक मनाते हैं। यह पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से लेकर शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाते हैं। पर्युषण पर्व 2023 तिथि 11 सितंबर है। यह 11 सितंबर से लेकर 18 सितंबर तक चलेगा।
पर्युषण पर्व कैसे मनाएं?
- पर्युषण का संधि विच्छेद करने पर परि+ उषण।
- परि का अर्थ चारों ओर और उषण का अर्थ धर्म की आराधना से है।
- कहा जाता है इस दिन लोग अपने मन के अंदर का प्रदूषण दूर कर दें।
- वह सच्चे सार्थक हो जाते हैं।
- पर्युषण पर्व तैयारी दो भाग में की जाती है।
- पहला तीर्थंकरों की पूजा करना और उन्हें स्मरण करना।
- दूसरा इस व्रत को शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आप को समर्पित करना।
- यह व्रत निर्जला व्रत होता है। इस दिन कुछ खाया और पिया नहीं जाता है।
- पर्युषण पर्व 8 दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है।
- आखिरी दिन को महापर्व के रूप में मनाते हैं।
- इस दौरान तपस्या और त्याग का विशेष महत्व होता है।
- पर्युषण पर्व के समय 5 कर्तव्य का विशेषकर ध्यान रखा जाता है।
पर्युषण के पांच कर्तव्य-
- संवत्सरी
- केशलोचन
- प्रतिक्रमण
- तपश्चर्या
- आलोचना और क्षमा याचना।
पर्युषण पर्व का महत्व-
यह पर्व महावीर स्वामी के सिद्धांत पर आधारित है। यह हमें सत्य के मार्ग पर चलना सिखाता है। कहा जाता है धर्म के मार्ग पर चलने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे मन के सभी विकार ख़त्म होते हैं। सभी के प्रति अच्छे भाव का विकास होता है। यह जैन धर्म का महत्वपूर्ण पर्व होता है। इसका व्रत करने से बुरे कर्मों का नाश होता है। इस दिन तपस्या करने अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसलिए जैन धर्म में पर्युषण पर्व का अधिक महत्व है।
पर्युषण पर्व का इतिहास-
यह पर्व मुख्य रूप से जैन धर्म में मनाया जाता है। यह पर्व 8 दिन की अवधि तक चलता है। 8वें दिन पर्युषण पर्व का धूमधाम से अंत किया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के दो समुदाय में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। पहला है श्वेताम्बर और दूसरा है दिगम्बर। इस पर्व के इतिहास के बारे में बात करें तो पर्युषण पर्व का इतिहास अत्यधिक पुराना यानि प्राचीन है। पर्युषण का अर्थ होता है “परिवार की भीड़” और इस त्यौहार को जैन धर्म में लोग अपने परिवार के साथ खुशीपूर्वक मनाते हैं। भगवान महावीर के जीवन काल से प्रभावित होकर पर्युषण पर्व को मनाया जाने लगा। माना जाता है जिस दौरान भगवान महावीर ने शिक्षा दी थी उस समय को ही पर्युषण पर्व कहा गया था। यह जैन धर्म का धार्मिक पर्व है। पर्युषण पर्व के दिन धार्मिक सन्देश पहुंचाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
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