
हिंदू धर्म में पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशी आती है। एकादशी पर व्रत व पूजन करने का विशेष महत्व है। कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी या देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। कुछ जगहों पर इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।
मान्यता है कि देवउठनी एकादशी या ग्यारस को भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागृत होते हैं। श्री हरि विष्णु के चार माह के शयन के दौरान हिंदू धर्म में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार आदि शुभ कार्य नहीं होते हैं। देवउठनी ग्यारस को जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन के बाद जागते हैं तब मांगलिक कार्य पुनः आरंभ हो जाते हैं। देवउठनी ग्यारस के शुभ पर्व पर माता तुलसी व शालिग्राम का विवाह भी आयोजित होता है। द्वादशी तिथि को तुलसी जी की पूजा करने का विशेष महत्व है। इंस्टाएस्ट्रो के विशेषज्ञ बता रहे हैं देवउठनी एकादशी के विषय में।आइये पढ़ते हैं देवउठनी एकादशी कब है और देवउठनी ग्यारस की पूजा विधि क्या है?
देवउठनी एकादशी 2023 की तिथि व शुभ मुहूर्त-
देवउठनी एकादशी इस वर्ष 23 नवम्बर को है। वैसे तो एकादशी की शुरुआत 22 नवंबर को रात 11 बजकर 3 मिनट से होगा और 23 नवंबर को रात 9 बजकर 1 मिनट पर समापन होगा। इंस्टाएस्ट्रो के ज्योतिषी के अनुसार पूजा का समय 23 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट से आरंभ होकर सुबह 8 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगा।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि-
देवउठनी एकादशी वर्ष की 24 एकादशियों में से सबसे महत्वपूर्ण है। इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सूर्योदय होने पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करना चाहिए। इस दिन निराहार उपवास रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कुछ लोग निर्जला उपवास भी रखते हैं परन्तु वह आपकी श्रद्धानुसार होता है।
संध्याकाल में घर के आंगन में चूना और गेरू से रंगोली बनाई जाती है जिस पर गन्ने का मंडप बनाते हैं। मंडप के नीचे माता तुलसी के पौधे को तथा विष्णु भगवान की मूर्ति को स्थापित करते हैं। भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप की पूजा की जाती है। विधि-विधान से पूजन करने के बाद ‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’ इस मंत्र का तेज स्वर में उच्चारण करते हुए श्री हरि विष्णु भगवान को निद्रा से जगाया जाता है। देवउठनी ग्यारस के दिन देवी-देवताओं के सामने 11 दीपक जलाए जाते हैं। इंस्टाएस्ट्रो के ऐप पर ऑनलाइन पूजा करवाई जाती है, आप इसका लाभ ज़रूर उठायें।
एकादशी के व्रत का महत्व-
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत को सबसे श्रेष्ठ व उत्तम माना गया है। व्रतों में व्रत – ग्यारस का व्रत| और उनमें भी देवउठनी ग्यारस का व्रत तो और भी लाभदायक होता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मनुष्य जीवन में की गई गलतियाँ माफ़ हो जाती हैं। एकादशी तिथि के दौरान सूर्य और अन्य ग्रह अपनी स्थिति में परिवर्तन करते हैं। सौर मंडल के इस परिवर्तन का असर मनुष्य की इन्द्रियों पर भी पड़ता है। अतः एकादशी के दिन व्रत करके इस परिवर्तन को संतुलित किया जा सकता है|
मान्यता है कि एकादशी व्रत का महत्व स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया था। एकादशी में पूर्ण व्रत पालन करने से 7 जन्मों के पापों का नाश होता है।
यही कारण है कि देवउठनी एकादशी को पाप विनाशिनी एवं मुक्ति देने वाली एकादशी भी कहा जाता है।
एकादशी व्रत की कथा पढ़ने एवं सुनने से सौ गायों के दान के बराबर पुण्य मिलता है।
तुलसी विवाह की कथा-
एक पौराणिक कथा है कि तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी। वह एक सर्वगुण संपन्न , पतिव्रता स्त्री थी परन्तु अपने पति के दुष्कर्मों के कारण दुखी थी। पति से नाराज़ हो, वह विष्णु भक्ति में लीन हो गयी। जालंधर दैत्य के रूप में अपना प्रकोप बढाता ही गया, अंततः भगवन विष्णु ने उसका वध कर दिया। पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता स्त्री तुलसी सती हो गयी। वह अपने पति की जलती चिता में बैठ गयी और भस्म हो गई। मान्यता है कि उसी भस्मी से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ | तुलसी की भक्ति व समर्पण देखकर भगवान विष्णु ने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह कर लिया| इस तरह यह एक प्रथा बन गयी। और हर वर्ष देवउठनी एकदशी पर तुलसी विवाह होने लगा।
एकादशी व्रत करने के नियम-
एकादशी का व्रत करने से सुख-समृद्धि व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत करने के लिए कुछ नियम हैं जिनका पालन करने से साधक की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है परन्तु इन नियमों को अनदेखा करने से साधक मनवांछित फल से वंचित रह जाता है। आइये जानते हैं एकादशी व्रत के नियम –
एकादशी उपवास में भूलकर भी न करें चावल का सेवन – एक पौराणिक कथा के अनुसार शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था। इस प्रक्रिया में उनके शरीर के कुछ अंग पृथ्वी में समा गए थे और बाद में उन्हीं स्थानों पर चावल उत्पन्न हुए। हिन्दू परम्परा में चावल को जीव माना गया और इसलिए व्रत में उसका सेवन वर्जित हो गया।
अतः एकादशी का व्रत करने वाले साधक को एकादशी के दिन चावल का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। इस नियम का पालन न करने वाले का व्रत अधूरा रह जाता है और वह पाप में भागीदार भी बन जाता है।
एकादशी के दिन तन और मन से अपने आप को पवित्र रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। भोग विलास से खुद को दूर रखना चाहिए और मन को शांत व संयमित रखना चाहिए। प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –
1- 2023 में देवउठनी एकादशी कब है ?
2-साल भर में कितनी एकादशी होती हैं ?
3-देवउठनी एकादशी की पूजा विधि क्या है ?
4-एकादशी व्रत का महत्व क्या है ?
5-तुलसी विवाह क्यों किया जाता है ?
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