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जानें आध्यात्मिकता और आंतरिक संतुलन क्या होता है ?

By January 28, 2023December 5th, 2023No Comments
Spirituality And Internal Balance

लोगों में ऐसी धारणा है कि आध्यात्मिक जीवन में कोई आनंद नहीं होता। और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए कष्ट झेलना जरूरी है। परन्तु यह सच नहीं है। आध्यात्मिकता जीवन-विरोधी या जीवन से पलायन करने को नहीं कहते हैं। आध्यात्मिकता का किसी धर्म या संप्रदाय से भी कोई संबंध नहीं है। और आध्यात्मिक होने के लिए आपको बाहरी जीवन से नाता भी नहीं तोड़ना पड़ता है। आध्यात्मिक होने का सही अर्थ है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। तो आइये जानते हैं इन्स्टाएस्ट्रो के ज्योतिष से कि असल में आध्यात्मिकता क्या है?

क्या होती है आध्यात्मिकता ?

बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, उसके बावजूद भी अगर कोई मनुष्य अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनंदित रहता है, तो वह आध्यात्मिक है। अगर मनुष्य को बोध है कि उसके दुख, क्रोध, क्लेश आदि के लिए कोई और नहीं बल्कि वह खुद जिम्मेदार है, तो वह मनुष्य आध्यात्मिकता के मार्ग पर है। अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, और अन्य बुरी आदतों को नष्ट करके संसार की भलाई के बारे में सोचना ही असल मायने में आध्यात्मिकता है।

Spirituality

आंतरिक संतुलन क्या है ?

आध्यात्मिकता का पालन करते हुए मनुष्य को मन में एक संतुलन बना रहता है। इसी को आंतरिक संतुलन कहा जाता है। आध्यात्मिकता के द्वारा मन को नियंत्रण में रखा जा सकता है। और मन की इंद्रियों को काबू में करके मन शांत रखना ही आंतरिक संतुलन है।

आंतरिक संतुलन की आवश्यकता क्या है ?

मानव मन बहुत ही चंचल होता है। इसे नियंत्रित करना मुश्किल है। दुनिया की चकाचौंध में मन भटक जाता है, अनियंत्रित हो जाता है। जब मन अशांत होता है, तब लाख कोशिश करने के बाद भी मनुष्य खुश नहीं रह पाता है। अतः मन को शांत करने के लिए, आंतरिक संतुलन अत्यंत ही आवश्यक है।

Importance Of Internal Balance
मनः हि मनुष्याणां कारण बंधन मोक्षयो। अर्थात मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। इस श्लोक से हमें अध्यात्म और आंतरिक संतुलन की आवश्यकता स्वतः ही पता चलती है।

कैसे चलें आध्यात्म की राह पर ?

आध्यात्मिकता को पाना कोई एक दिन का कार्य नहीं है। यह निरंतर प्रयास और अभ्यास से ही हासिल किया जा सकता है। साथ ही आध्यात्मिक होना आसान नहीं है। अपने मन को नियंत्रित करने के लिए इन बातों का ध्यान में रखें –

  • स्वयं को ईश्वर के सामने समर्पित कर दें। और फिर उन्हीं के इशारों पर कार्य करें। इसे आध्यात्म को सम्पर्ण कहते हैं।
  • इस तथ्य को अच्छे से जान लें और समझ लें कि हम खुद अपने आनंद और दुःख का कारण है। संसार के किसी भी मनुष्य में हमारी भावनाओं का नियंत्रण करने की शक्ति नहीं है। हमारे साथ जो घटित हो रहा है उसके लिए हम खुद ज़िम्मेदार हैं।
  • समाज और संसार के बीच रहते हुए भी अपने आप को नियंत्रित करना सीखें। चाहे बाहर अशांति फैली हो, हमारे मन के भीतर सदैव शांति ही बनी रहनी चाहिए।

Path to spirituality

सहस्रार चक्र

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शरीर का सातवां चक्र होता है। यह आध्याxत्मिक और भौतिक बदलाव के लिए जिम्मेदार है। यह चक्र मानव शरीर में सिर के ऊपरी हिस्से में स्थित होता है। यह चक्र मस्तिष्क से संबंधित सभी चीज़ों का नियंत्रण करता है। जब चक् संतुलित होता है, तब व्यक्ति को आध्यात्मिकता की राह पर ले जाता है। और परमात्मा से जोड़ता है। सहस्रार चक्र में मेधा शक्ति नामक एक महत्त्वपूर्ण शक्ति होती है। यह शक्ति एक हार्मोन की तरह होती है। यह स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करती है। इस शक्ति को सक्रिय और मजबूत बनाने के लिए नियमित रूप से योग का अभ्यास करना चाहिए। इस चक्र को जागृत होने पर मनुष्य दिव्य शक्ति से जुड़ जाते हैं।

सहस्रार चक्र को जागृत करने के लिए लें ये संकल्प

  • मैं इस ब्रह्मांड का विस्तार हूं।
  • मैं असीम हूँ और सीमाहीन भी हूं।
  • अपनी संकीर्ण धारणाओं से आगे बढ़कर मैं अपने आप को पूरी तरह से स्वीकार करता हूं।
  • मैं संसार की दिव्य शक्तियों से प्रेरणा लेता हूँ।
  • मैं अपनी आत्मा से जुड़ा हुआ हूं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. आध्यात्मिकता क्या है?

आध्यात्मिकता का सही अर्थ है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, और अन्य बुरी आदतों को नष्ट करके संसार की भलाई के बारे में सोचना ही असल मायने में आध्यात्मिकता है।

2. आंतरिक संतुलन क्या है ?

आध्यात्मिकता की राह पर चलने के लिए मन में संतुलन बनाना आवश्यक होता है। इसी को आंतरिक संतुलन कहा जाता है। आध्यात्मिकता के द्वारा मन को नियंत्रण में रखा जाता है। और मन की इन्द्रियों को काबू में करके मन शांत रखना ही आंतरिक संतुलन कहलाता है।

3. सहस्रार चक्र क्या होता है ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शरीर का सातवां चक्र सहस्त्रार चक्र कहलाता है। यह आध्यात्मिकता और भौतिक बदलाव को नियंत्रित करता है। इस चक्र के जागृत होने पर मनुष्य दिव्य शक्ति से जुड़ जाता है।

4. सहस्त्रार चक्र में मेधा शक्ति क्या होती है ?

मेधा शक्ति एक महत्त्वपूर्ण शक्ति होती है जो एक हार्मोन की तरह होती है। यह स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करती है। इसे सक्रिय और मजबूत करने के लिए योग का अभ्यास करना चाहिए।

5. क्यों होती है आंतरिक संतुलन की आवश्यकता ?

मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। अतः मन को हमेशा नियंत्रण में रखना चाहिए। यदि चंचल मन भटक जायेगा तो मनुष्य को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए आंतरिक संतुलन अत्यंत ही आव्यशक होता है।

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Yashika Gupta

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