आज हम जानेंगे एक रोचक कथा भगवान विष्णु ने राहु का सिर क्यों काटा? इस कहानी से दो तथ्य जुड़े हुए हैं। इस लेख में जानेंगे राहु का सिर कैसे कटा? केतु की उत्पत्ति की संपूर्ण गाथा और राहु का धड़ नहीं और केतु का सिर नहीं ऐसा क्यों? कुंडली में राहु और केतु को अशुभ ग्रह माना जाता है।
राहु और केतु के बारे में-
इन दोनों ग्रह को अत्यधिक अशुभ ग्रह माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में यह दोनों ग्रह पापी ग्रह माने जाते हैं। साथ ही साथ इन्हे छाया ग्रह भी कहा गया है। राहु को नवग्रह में भी शामिल किया गया है। राहु और केतु ब्रह्माण्ड में उपस्थित नहीं हैं। ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यह कुंडली पर एक व्यापक प्रभाव डालते हैं। कुंडली में राहु और केतु के शुभ और अशुभ परिणाम से व्यक्ति का जीवन उथल-पुथल हो जाता है। परन्तु राहु और केतु का शुभ फल व्यक्ति का जीवन बदल भी जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राहु और केतु के उत्पत्ति की कई कहानियां बताई गई है। आज हम आपको बताएँगे राहु का सिर भगवान विष्णु ने क्यों काटा? और केतु की उत्पत्ति कैसे हुई?
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भगवान विष्णु ने राहु का सिर क्यों काटा?
पौराणिक कथा के अनुसार राहु और केतु की कहानी अत्यधिक अनोखी है। एक बार समुद्र मंथन हुआ। जिसमें देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई थी। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और देवताओं को अमृत पिलाया। परन्तु देवताओं की पंक्ति में राहु देवताओं का रूप धर के बैठ गया। और अमृत पान कर लिया। यह सब सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया था। तुरंत भगवान विष्णु को राहु के इस छल के बारे में सूचित कर दिया। जिसके कारण भगवान विष्णु अत्यधिक क्रोधित हो गए। क्रोधित भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को काट दिया। परन्तु राहु को मृत्यु प्राप्त नहीं हुई। क्योंकि राहु ने अमृत को पी लिया था। राहु के दो भाग हो गए। राहु का एक हिस्सा केतु कहलाया। धड़ वाला हिस्सा केतु बना और शरीर का हिस्सा राहु बना। इसलिए कहा जाता है राहु का धड़ नही केतु का सिर नहीं।
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इस प्रकार की रोचक कहानी के लिए इंस्टाएस्ट्रो से जुड़े रहें और कुंडली में राहु का स्थान शुभ या अशुभ है। ये जानने के लिए इंस्टाएस्ट्रो के ज्योतिषी से बात करें।