
कुंडली में राजयोग और धन योग के अतिरिक्त और भी ऐसे योग होते हैं, जो जातक को शक्तिशाली बनाते हैं। इसी प्रकार का एक योग है – परिवर्तन राजयोग। जब कुंडली के अनुकूल भावों का संबंध अन्य अनुकूल भावों से बनता है, तब यह शुभ योग बनता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब दो ग्रह आपस में अपने भावों का आदान-प्रदान करते हैं तब परिवर्तन राजयोग की स्थिति बनती है। परिवर्तन योग में दोनों ग्रह एक समान व्यवहार करते हैं। और वे आपस में जुड़े हुए होते हैं। आइये विस्तार से जानते हैं इन्स्टाएस्ट्रो के ज्योतिष से परिवर्तन योग के विषय में।
परिवर्तन योग क्या है ?
जब ग्रहों के स्वामी भाव का संयुक्त रूप से आदान-प्रदान होता है तब परिवर्तन योग बनता है। इस विनिमय से दोनों भाव अत्यंत ही महत्वपूर्ण बन जाते हैं। जन्म कुंडली में शुभ योगों के बनने से कुंडली शक्तिशाली बनती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार परिवर्तन राजयोग
परिवर्तन का शाब्दिक अर्थ है “विनिमय”। जब दो ग्रह अपनी राशियों का आदान-प्रदान करते हैं, तब यह दो ग्रहों के बीच परिवर्तन संबंध को दर्शाता है। दो ग्रहों के बीच मौजूद संबंध का सबसे शक्तिशाली रूप है परिवर्तन राजयोग। परिवर्तन राजयोग दोनों ग्रहों को जोड़ता है और दोनों ग्रह एक-दूसरे के भावों को अपने पास बुलाते हैं। परिवर्तन मतलब केवल राशियों का आदान-प्रदान नहीं होता है। बल्कि शक्ति, ऊर्जा, एक-दूसरे की प्रकृति का भी आदान-प्रदान होता है।
परिवर्तन योग क्यों ज़रूरी है ?
कुंडली में परिवर्तन राजयोग का महत्व इस प्रकार है –
यह आवश्यक नहीं है कि कुंडली में होने वाले सभी परिवर्तन योग हमेशा सकारात्मक ही हों। कुंडली में शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के भाव शामिल होते हैं, इसलिए परिवर्तन योग भी ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ या अशुभ हो सकते हैं।
परिवर्तन राजयोग के प्रकार
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार परिवर्तन राजयोग तीन प्रकार से वर्गीकृत होता है – महा परिवर्तन योग, दैन्य योग और खल योग।
कुंडली में महा परिवर्तन योग
महा परिवर्तन योग तब बनता है जब कुंडली के 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10 और 11 भाव के स्वामी आपस में भावों का आदान-प्रदान करते हैं। इसमें शामिल भाव इस प्रकार हैं –
- त्रिकोण या ट्राइन (पहला, पांचवां और नौवां) भाव
- केंद्र भाव (पहला, चौथा, सातवां और दसवां) भाव
- धन से संबंधित दो शुभ भाव (दूसरा और ग्याहरवां) भाव
- इस प्रकार महा परिवर्तन योग में कुल 28 योग संभव हो सकते हैं।
महा योग का प्रभाव
कुंडली में महा परिवर्तन योग जातक को शुभ परिणाम देता है क्योंकि इस प्रकार के योग में शामिल दोनों भाव शुभ होते हैं। इस योग में दोनों ग्रह एक दूसरे के पूरक होते हैं और भाव के महत्व को बढ़ाते हैं। इस योग के प्रभाव से जातक के लक्ष्यों की पूर्ति होती है। और जातक धनवान तथा भाग्यशाली होता है।
कुंडली में दैन्य परिवर्तन योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली के 6, 8 और 12वें भाव अशुभ भाव कहलाते हैं। जब इन अशुभ भावों के स्वामी पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, आठवें, नौवें, दसवें या ग्यारहवें भावों के साथ अपने भावों का आदान-प्रदान करते हैं तब दैन्य योग की स्थिति बनती है। दैन्य योग में 30 प्रकार के परिवर्तन योग हो सकते हैं।
दैन्य योग का प्रभाव
दैन्य परिवर्तन योग वाले जातक को जीवन में कठोर परिश्रम और संघर्ष करना पड़ता है। उसका स्वभाव दुष्ट व क्रूर होता है। शत्रु उसे हानि पहुंचाते हैं या फिर अपने हित के लिए उसका उपयोग करते हैं। दैन्य योग के प्रभाव से जातक का मन अस्थिर होता है और परिणामस्वरुप वह पाप कर्मों में लीन हो जाता है।
कुंडली में खल परिवर्तन योग
कुंडली में तीसरे भाव की भागीदारी से खल योग बनता है। जो की अशुभ भाव का माना जाता है। जब कुंडली में तीसरे भाव के स्वामी का अन्य भाव के स्वामी के साथ आदान-प्रदान होता है तब खल योग उत्पन्न होता है। तीसरा भाव सामान्यतः 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10 या 11वें भाव के स्वामी से भाव बदलता है। खल योगों में 8 विभिन्न भाव संभव हो सकते हैं।
खल योग का प्रभाव
खल परिवर्तन योग वाला व्यक्ति चंचल मन का होता है। इस योग वाले जातक को जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है, परन्तु उसे अपनी मेहनत का फल अवश्य मिलता है। यह योग पूरी तरह से नकारात्मक नहीं है। यह शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल देता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
1. ज्योतिष शास्त्र में परिवर्तन योग क्या है?
2. परिवर्तन योग क्यों ज़रूरी है?
3. परिवर्तन राजयोग के कितने प्रकार होते हैं?
4. दैन्य परिवर्तन योग क्या होता है?
5. महा परिवर्तन योग का प्रभाव क्या होता है?
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