एक हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और देवों के देव महादेव का एक बार अपने भक्तों की वजह से बड़ा युद्ध हो चुका है। भगवान श्री राम महादेव के एक बड़े भक्त माने जाते हैं लेकिन एक समय कुछ ऐसी परिस्तिथयां बन गयीं थी जिनकी वजह से भगवान महदेव और भगवान राम को एक दूसरे के खिलाफ युद्ध की भूमि में कूदना पड़ा था।
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार दोनों महान देवताओं के बीच युद्ध का वह मंजर बहुत भयानक बताया जाता है। क्या आप भी जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों हुआ श्री राम और शिव का युद्ध? या कैसे हुआ श्री राम और शिव का युद्ध? तो आज हम आपको इस लेख के द्वारा भगवान श्री राम और भगवान शिव के बीच हुए इस युद्ध की कथा को सुनाने वाले हैं जिसको सुनकर आपको इस युद्ध से जुड़ी सभी जानकारी प्राप्त हो जाएगी और आपको आपके सभी प्रश्नों के उत्तर भी इसी कथा के द्वारा प्राप्त होंगे। जानने के लिए आगे पढ़ें।
युद्ध कथा
प्रभु श्री राम और भगवान शिव की इस दिलचस्प कथा के पीछे कई तथ्य जुड़े हैं। इस कथा में आपको भगवान श्री राम और भगवान राम के अलावा उनके सबसे बड़े और बलवान भक्तों का भी वर्णन मिलता है। जैसे बजरंग बलि हनुमान और महाराज नंदी का भी इस कथा में वर्णन मिलता है।
प्रभु श्री राम ने छोड़ा अश्वमेध यज्ञ का घोडा
एक समय प्रभु श्री राम ने अपनी नगरी अयोध्या से अश्वमेध यज्ञ का घोडा छोड़ दिया। जो नगर- नगर जाकर घूमने लगा। अश्वमेध यज्ञ का घोडा छोड़ने का मतलब होता है कि, एक बड़ा लंबा-चौड़ा घोडा कोई राजा यदि अपनी नगरी से छोड़ता है तो वह घोडा जहाँ-जहाँ भी जायेगा वहां की प्रजा या राजा को उस राजा के शासन से कोई परेशानी नहीं होगी और उस राज्य के राजा और प्रजा को राजा के खिलाफ कोई युद्ध नहीं करना वह चुपचाप अपना राज्य राजा को सौंप देगा। लेकिन यदि किसी राज्य का राजा या कोई भी उस घोड़े को पकड़ लेता है तो इसका अर्थ है कि उस राज्य या जिसने भी घोडा पकड़ा उसको अश्वमेध यज्ञ का घोडा छोड़ने वाले राजा से युद्ध करना है क्योंकि वह उसके राज से संतुष्ट नहीं हैं। और न ही वह अपना राज्य राजा को देगा।
इसी प्रकार प्रभु श्री राम का घोड़ा कई नगरों में पकड़ा गया लेकिन जैसे ही पकड़ने वाले को खबर होती की यह घोड़ा प्रभु श्री राम का है तो पकड़ने वाला प्रभु श्री राम की सेना के आगे नतमस्तक हो जाता। प्रभु श्री राम की सेना में, राम भक्त हनुमान, शत्रुघ्न, सुग्रीव और श्री राम के भाई भरत के पुत्र पुष्कल शामिल थे, इसके अलावा उनकी सेना में और भी बहुत पराक्रमी योद्धा शामिल थे।
राज्य देवपुर में रोका गया घोड़ा
अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अबतक कई राज्य जीत चुका था। प्रभु श्री राम की सेना बहुत प्रसन्नता के साथ घोड़े के पीछे- पीछे चल रही थी, तभी घोड़े को राज्य देवपुर में रोका गया। राज्य देवपुर के राजा वीरमणि थे। वीरमणि भगवान श्री राम और भगवान शिव के परम भक्त भी थे। लेकिन राजा वीरमणि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी और भगवान भोलेनाथ ने उन्हें वरदान दे रखा था की सम्पूर्ण सृष्टि में से वीरमणि के राज्य देवपुर पर कभी कोई आक्रमण नहीं कर पायेगा। यदि किसी ने ऐसा किया तो भगवान शिव खुद इस युद्ध को उनकी ओर से लड़ेंगे। इसलिए राजा देवमणि के राज्य पर ड़र के कारण कोई आक्रमण नहीं करता था। राजा वीरमणि के 2 पुत्र रुक्मांगद और शुभंगद थे। उनके दोनों ही पुत्र बहुत महान और वीर पराक्रमी थे।
रुक्मांगद ने दिया युद्ध का निमंत्रण
रुक्मांगद ने अश्व घोड़े को पकड़ लिया और अश्व को बनाया बंदी इसके पश्चात सैनिकों को युद्ध की चेतावनी दे डाली इसके पश्चात रुक्मांगद अपने पिता के पास युद्ध की आज्ञा लेने के लिए चले गए। जैसे ही रुक्मांगद के पिता राजा देवमणि को पता चला की यह घोड़ा उनके आराध्य भगवान श्री राम का है तो उन्होंने अपने पुत्र को समझाया की यह घोडा भगवान राम का है इसे वो शीघ्र ही वापस लौटा दें तब रुक्मांगद ने अपने पिता से कहा की ‘पिताजी में युद्ध की चेतावनी देकर आया हूँ अतः अब यदि में पीछे हटा तो में कायर बन जाऊंगा और इससे उनका भी अपमान होगा।
राजा देवमणि माने युद्ध के लिए
अपने बेटे के कहे कथनों को सुनकर राजा देवमणि ने उसे युद्ध करने की आज्ञा प्रदान की। इस युद्ध के लिए राजा देवमणि अपनी सेना अपने दोनों पुत्रों और अपने योद्धा भाई के युद्ध भूमि में पहुंचे।
भगवान राम की सेना आयी युद्ध भूमि पर
भगवान राम के भाई शत्रुघ्न सेना के साथ युद्ध भूमि में जा पहुंचे। और शत्रुघ्न सेना के साथ युद्ध को जीतने के लिए राजा देवमणि की सेना पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगे।
बजरंगबली ने की युद्ध रोकने की कोशिश
शत्रुघ्न और सेना को युद्ध की के लिए आगे बढ़ता देख कर भगवान हनुमान ने उनको रोका और कहा की इस नगरी को भगवान शिव के द्वारा वरदान मिला हुआ है कि यहाँ कोई इस नगरी में कभी आक्रमण नहीं करेगा और भगवान राम भगवान शिव के सच्चे भक्त हैं वह उनका आदर करते हैं। अब हमें एक बार भगवान राम से इस युद्ध के बारे में अवश्य पूछना चाहिए। लेकिन शतुघ्न ने कहा की ऐसा संभव नहीं है की हमारे होते हुए भगवान राम को यहाँ आना पड़े यह उनका अनादर होगा अतः हम यह युद्ध समाप्त करेंगे और जीतेंगे।
युद्ध भूमि में छिड़ा भयंकर युद्ध
अब दोनों पक्षों के बीच में एक बड़ा और भयंकर युद्ध शुरू हो गया था। भगवान श्री राम की सेना लगातार राजा वीरमणि की सेना पर भारी पड़ती नज़र आ रही थी। इसी बीच भरत पुत्र पुष्कल ने राजा वीरमणि के ऊपर आक्रमण कर दिया दोनों एक दूसरे के साथ घमासान युद्ध करने लगे दोनों के बीच युद्ध बढ़ता ही जा रहा था। पुष्कल ने राजा वीरमणि पर आठ नाराच बाणों से वार किया जिससे राजा वीरमणि घायल हो गए और भयंकर पीड़ा लिए वही गिर गए। दूसरी और बजरंग बलि राजा वीरमणि के भाई से युद्ध करने लगे और शत्रुघ्न उनके दोनों पुत्रों से युद्ध करने लगे। भगवान बजरंगबली और शत्रुघ्न ने भी कुछ ही देर में राजा के भाई और दोनों पुत्रों को हरा दिया। अब राजा वीरमणि बेहोशी से वापस आये तो उन्होंने भगवान शिव को पुकारा।
महादेव की सेना हुई युद्ध में शामिल
भगवान भोलेनाथ ने राजा वीरमणि की पुकार सुनकर अपनी सारी सेना के साथ नंदी, वीरभद्र और भृंगी को युद्ध के मैदान में जाकर युद्ध करने का आदेश दिया। तभी भगवान भोलेनाथ के आदेश का पालन करने के लिए सारी शिव की सेना युद्ध भूमि में उतर गयी उनके वहां जाते ही मानों पूरा खेल ही बदल गया हो। शिव की सम्पूर्ण सेना भगवान राम की सेना पर अस्त्र-सस्त्र लेकर टूट- पड़ी। नंदी और भगवान हनुमान एक दूसरे से युद्ध करने लगे दोनों ही महान पराक्रमी थे युद्ध करते करते नंदी ने शिवास्त्र का प्रयोग भगवान हनुमान पर कर दिया जिससे वह मूर्छित हो गए, शिवास्त्र का प्रयोग करने की नंदी ने महदेव से आज्ञा पहली ही ली हुई थी जिसका उन्हें कोई डर भी नहीं था। अब भगवान राम की सेना कमजोर पड़ती दिखने लगी इसी बीच पुष्कल ने अपने सभी दिव्यास्त्रों का प्रयोग वीरभद्र पर कर दिया लेकिन दिव्यास्त्रों का प्रयोग विरभद्र पर नहीं हुआ क्योंकि वीरभद्र उनके सभी वारों से बच गए। इसके पश्चात वीरभद्र ने भरत पुत्र पुष्कल को मौका देख कर मार डाला इस प्रकार भरत पुत्र पुष्कल वीरगति को प्राप्त हो गए।
भगवान श्री राम युद्ध भूमि में
लाखों सैनिकों और भरत पुत्र पुष्कल की मृत्यु के पश्चात भगवान हनुमान बहुत दुखी हुए और कहने लगे कि, मैंने कहा था हमें भगवान राम को याद करना चाहिए। इसके बाद भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ युद्ध भूमि में उपस्थित हुए। भगवान राम के युद्ध भूमि में जाते ही उनकी सेना का पलड़ा भारी हो गया और पासा एक बार फिर पलट गया अब फिर से भगवान राम की सेना युद्ध जीतने लगी।
देवों के देव महादेव हुए युद्ध में शामिल
जब वीरमणि की सेना ने पाया कि वह सब युद्ध में पराजित होने की कगार पर हैं तो सभी ने मिलकर भगवान शिव को याद किया और युद्ध में आने के लिए प्रार्थना करने लगे। अपनों भक्तों की पुकार सुनकर भगवान शिव शंकर युद्ध भूमि पर जा पहुंचे। भगवान शिव शंभू के युद्ध भूमि में आगमन से कई सेना के कई सैनिक उनका प्रकोप देखकर ही मूर्छित हो गए या वीरगति को प्राप्त हो गए।
चूँकि भगवान राम भी भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हैं इसलिए भगवान राम ने अपने अस्त्र- शस्त्र भगवान शिव के रख दिए और नतमस्तक होकर कहा कि, ‘हे सृष्टि को चलाने वाले पालनकर्ता यह सब कुछ आपका ही रचाया हुआ खेल है, बिना आपकी इच्छा के एक पत्ता भी नहीं हिलता है आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा आदेश दीजिये की आप क्या चाहते हैं।’ तब भगवान शिव ने कहा की ‘हे राम मुझे आपसे युद्ध नहीं करना है लेकिन मैंने मेरे परम भक्त राजा वीरमणि को वरदान दिया है और मेरा दिया वरदान खाली नहीं जाता है इसलिए में तुम्हारे साथ युद्ध करूंगा’।
भगवान महादेव और भगवान राम के बीच युद्ध
यह युद्ध बहुत बड़ा और भयंकर होगा यह सोचने के बाद सभी देवता और असुर भी इस युद्ध को देखने के लिए युद्ध भूमि से बहार उपस्तिथ हुए। अब दोनों के बीच एक बड़ा युद्ध छिड़ चुका था। भगवान राम के द्वारा भगवान महादेव पर काफी शस्त्रों का प्रयोग करने के पश्चात भी महादेव संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे। अतः अब भगवान राम ने महादेव के द्वारा उपहार में दिया गया अस्त्र पाशुपतास्त्र निकाला। उन्होंने भगवान शिव से कहा की ‘हे देवो के देव महादेव एक समय यह अस्त्र आपने ही मुझे उपहार स्वरूप दिया था और बताया था की इस अस्त्र को चलाने से में सम्पूर्ण सृष्टि में किसी को भी पराजित कर सकता हूँ, अतः मेरे भोलेनाथ मेरे आराध्या मुझे इस अस्त्र को आप पर ही चलाने की आज्ञा दीजिये।
हुई युद्ध की समाप्ति
भगवान राम के द्वारा यह कथन सुनकर भगवान शिव मुस्कुराए और उन्हें अस्त्र का उपयोग अपने ऊपर करने की आज्ञा दी। आज्ञा के पश्चात भगवान राम ने भगवान भोलेनाथ पर पाशुपतास्त्र से वार किया तब जाकर भगवान भोलेनाथ उनसे संतुष्ट हुए। इसके पश्चात भगवान भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर भगवान राम से वरदान मांगने के लिए कहा तो, भगवान राम ने वरदान मांगा कि ‘हे प्रभु इस युद्ध के कारण दोनों पक्षों के अनेकों सैनिकों और भरत पुत्र पुष्कल को अपनी जान गवानी पड़ी है अतः में आपसे वरदान मांगता हूँ की, सभी इन सभी को आप अपनी कृपा दृष्टि दिखाते हुए जीवन दान दें। भगवान राम का माँगा हुआ वरदान भगवान शिव ने पूरा किया और सभी को जीवनदान दिया। अब भगवान शिव के कहने पर वीरमणि ने श्रीराम का घोड़ा वापस किया और अपना राज काज अपने पुत्रों के हवाले कर भगवान श्री राम के साथ चला गया।
इसके कथा के द्वारा आपने जाना होगा की क्यों हुआ श्री राम और शिव का युद्ध? कैसे हुआ श्री राम और शिव का युद्ध? और किसने भगवान श्री राम के अश्व को बनाया बंदी? यह कथा वेद हिन्दू पुराणों में बहुत प्रचलित मानी जाती है। यदि आपको ऐसी प्रकार की अन्य कथाओं के बारे में यदि आप जानना चाहते हैं तो आप इंस्टाएस्ट्रो के ज्योतिषियों से बात कर सकते हैं वह आपको जानकारी देंगे की ऐसी कथाएं आप किस वेद पुराण में कहा पढ़ सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
1. भगवान श्री राम और भगवान राम का युद्ध कहाँ हुआ था?
2. युद्ध किस लिए शुरू हुआ था?
3. राजा देवमणि के कितने पुत्र थे?
4. भगवान राम की तरफ से कौन युद्ध में शामिल था?
5. यह युद्ध कब हुआ था?
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