भगवान शिव के बारे में-
शिव जी देवों के देव महादेव कहलाते हैं। भगवान शिव का स्वरूप अन्य देवताओं से अलग माना जाता है। शिव जी को कई नाम है। शंकर,भोलेनाथ,महेश्वर,शम्भू और नीलकंठ आदि के नाम से जानते हैं। पुराणों के अनुसार शिव जी के 108 नाम हैं। भगवान शंकर दयालु स्वभाव के हैं। भोलेनाथ की पूजा से भक्त मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। त्रिशूल भगवान शंकर का अस्त्र है। वैसे अस्त्र संहार का प्रतीक मन जाता है। पर शिवजी का त्रिशूल संसार की तीन तरह की प्रवृत्तियों को दर्शाता है।
आज हम इस लेख में जानेंगे। शिव के विष पीने की कथा। समुद्र मंथन कहां और कब हुआ था?
भगवान शिव के विष पीने की कथा-
एक बार जब सृष्टि में महाप्रलय आयी थी। तब देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। जिससे अमृत और अन्य अनमोल चीज़ों की प्राप्ति हो सके। समुद्र मंथन में विष भी निकला। जिस प्रकार अच्छाई के साथ बुराई भी आती है। उसी प्रकार समुद्र मंथन में अमृत के साथ विष भी आया था। इस विष का नाम हलाहल विष था। कोई भी देवता और असुर इस विष को पीने के लिए तैयार नहीं था।
शिव जी ने हलाहल विष को पिया था। यह विष जैसे ही शिव जी की कंठ पर गया। माँ पार्वती ने शंकरजी के गले को पकड़ लिया था। जिसके कारण विष उनके गले पर रुक गया। जिसकी वजह से शिव जी का गला नीला पड़ गया था। तबसे शिव जी का नाम नीलकंठ पड़ा। माँ पार्वती ने शिव जी से विष पीने का कारण पूछा। शिव जी ने कहा। अगर इस विष को नहीं पीता। तो इस सृष्टि का नाश हो जाता। क्योंकि विष की एक बूँद सम्पूर्ण सृष्टि को तबाह कर देती।
इस कथा से प्राप्त शिक्षा-
- शिव जी के विष पीने की कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है।
- समुद्र मंथन का लक्ष्य समुद्र से अमृत निकालना था।
- जैसे किसी व्यक्ति के अंदर अच्छाई होती है। तो बुराई भी जरूर होती है।
- अपने ऊपर बुराइयों को हावी नहीं होने देना चाहिए।
- अगर कोई बुराई फैला भी रहा है।
- उस बुराई को दूसरे तक नहीं पहुँचाना चाहिए।
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