हिंदू मान्यताओं में शादी को 16 संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार कुल 36 गुण होते हैं जिनमें महिला और पुरुष के जन्मकुंडली में 18 गुण मिलने पर विवाह किया जा सकता है। अगर किसी जोड़ियों के 36 गुण मिलते हैं तो उसे भगवान द्वारा बनाई गई सर्वश्रेष्ठ जोड़ी माना जाता है, जैसे सीता और राम की जोड़ी। कई ज्योतिषियों का ऐसा भी मानना है कि केवल गुण मिलने की संख्या पर विवाह को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।
सुखमय वैवाहिक जीवन ग्रहों की स्थिति पर भी निर्भर करता है। यह अक्सर देखा गया है कि 32 गुणों के मिलने के बाद भी पुरुष एवं महिला के बीच तलाक हो जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है की मांगलिक एवं अमांगलिक पुरुष महिला के गुण भी मिल जाते हैं परंतु शास्त्रों के अनुसार उनका विवाह संभव नहीं है। अतः विवाह से पहले जन्मकुंडली में ग्रहों की दशा को देखना अति आवश्यक है। ग्रहों के आकलन से ही वैवाहिक जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है।
विवाह ग्रह दशा कैसी होनी चाहिए?
विवाह हेतु ग्रहों की सही स्थिति होना बहुत महत्वपूर्ण है। कुंडली में बृहस्पति,शुक्र और मंगल ग्रह वैवाहिक जीवन के संबंध में अहम भूमिका निभाते हैं। यानी एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह तीनों ग्रहों की स्थिति काफी महत्वपूर्ण है।
तीनों ग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण बृहस्पति है जो सुखी पारिवारिक जीवन के लिए कारक माना जाता है। इसी कारण से पुरुष एवं महिला दोनों के कुंडली में गुरु ग्रह रहित होना चाहिए। साथ में कुंडली में सप्तम भाव सुखी वैवाहिक जीवन को दर्शाता है। सुखी वैवाहिक जीवन में जन्मकुंडली में सप्तम भाव का काफी महत्व रखता है। इसलिए यह हमेशा पाप प्रभाव से रहित होना चाहिए। सप्तम भाव का संबंध सूर्य, शनि, मंगल, राहु, केतु से नहीं होना चाहिए क्योंकि यह अलगाव को दर्शाता है। यह भी ध्यान रखना है कि सप्तमेश कुंडली 6, 8, 12वें भाव में नहीं होना चाहिए। सप्तम भाव के स्वामी का नक्षत्र भी 6, 8, 12वें भाव में नहीं होना चाहिए। सप्तम भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव होना वैवाहिक जीवन में कष्ट की अनुभूति कराता है।
शुक्र ग्रह का भी पुरुष एवं महिला के वैवाहिक जीवन में काफी महत्व है। यह पुरुष और महिला के अंतरंग संबंधों का कारक माना जाता है इसलिए शुक्र ग्रह का भी प्रबल होना जरूरी है। शुक्र ग्रह सामर्थ्यवान एवं शुभ होना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार कुंडली में शुक्र ग्रह पूर्ण रूप से पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। शुक्र ग्रह का पाप प्रभाव से मुक्त होने के बाद ही सुखी वैवाहिक जीवन की संभावना बनती है।
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सुखमय वैवाहिक जीवन की ग्रह दशा कैसी होनी चाहिए?
अब तक आपको लेख से वैवाहिक जीवन में ग्रहों की महत्वता समझ में आ गई होगी। सप्तम भाव के स्वामी पर हमेशा शुभ ग्रहों की दृष्टि होनी चाहिए एवं शुक्र का संबंध पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो आपका वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखी एवं प्रेम पूर्वक व्यतीत होगा। आपके सप्तम भाव पर शनि, राहु या मंगल में से किन्हीं दो ग्रहों की दृष्टि होगी तो वैवाहिक सुख में कमी रह सकती है। अगर शुक्र पाप प्रभाव से मुक्त हो एवं किसी उच्च ग्रह के साथ शुभ भाव में बैठा हो तो आपके वैवाहिक जीवन में कोई कमी नहीं आएगी।
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