वास्तु शास्त्र: प्राचीन भारत का स्थापत्य विज्ञान

क्या आप अपने घर या ऑफिस में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाना चाहते हैं? वास्तु के नियमों को अपनाकर आप अपने जीवन में सुख, शांति और तरक्की ला सकते हैं। हालांकि वास्तु क्या है (Vastu kya hai), यह कैसे काम करता है और आपके जीवन को कैसे बेहतर बना सकता है यह जानने के लिए नीचे पढ़ें।

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वास्तु शास्त्र क्या है?

क्या आपने कभी सोचा है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनाना इतना जरूरी क्यों माना जाता है? दरअसल, हर जीव में प्रकृति का अपना एक तत्व होता है जो उन्हें अपना घर सही तरीके से बनाने में मदद करता है। चाहे वो पक्षी हो, जानवर हो या एक छोटी सी चींटी सभी अपना घर प्रकृति के नियमों के अनुसार ही बनाती है।

प्रकृति के इन नियमों को ध्यान में रखते हुए प्राचीन भारतीय ऋषियों ने एक खास विज्ञान विकसित किया जिसे हम वास्तु शास्त्र के नाम से जानते हैं। यह शास्त्र दिशाओं और पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के सिद्धांतों पर काम करता है जो किसी के स्थान की सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाते हैं।

वास्तु शास्त्र आपके जीवन में कितना महत्वपूर्ण है?

वास्तु क्या है (Vastu kya hai) ये सवाल जानने के बाद वास्तु के अर्थ को समझते हैं। वास्तु शब्द संस्कृत से बना है जिसका अर्थ है 'निवास स्थान' और शास्त्र जिसका अर्थ है 'विज्ञान'। इसलिए वास्तु शास्त्र का अर्थ दिशाओं और वास्तुकला के विज्ञान के रूप में जाना जाता है। इसे वास्तुकला का प्राचीन भारतीय रूप भी कहा जाता है।

वास्तु का विज्ञान चुंबकीय तरंगों के प्रवाह पर निर्भर करता है, जो बदले में हमारे जीवन को प्रभावित करता है। यह प्रवाह हमारे शरीर और आस-पास के कुछ रसायनों में परिवर्तन का कारण बनता है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत हमारे घर में सकारात्मकता लाने में मदद कर सकते हैं।

वास्तु शास्त्र के 5 तत्व

हिन्दी में वास्तु ( Vastu in hindi) शास्त्र को समझने से पहले उसके पांच तत्व को समझना होगा जिन्हें 'पंच तत्व' के नाम से जाना जाता है। ये तत्व इंसान के जीवन को प्रभावित करते हैं। 'पंच' का मतलब है पांच और 'तत्व' का मतलब है मूल तत्व। नीचे हिन्दी में वास्तु शास्त्र (Vastu shastra in hindi) के तत्व दिए गए हैं:

  • पृथ्वी : यह तत्व स्थिरता और मजबूती को दर्शाता है। किसी भी इमारत की नींव के लिए यह सबसे जरूरी तत्व है।
  • जल : यह तत्व बहाव और भरोसे को दर्शाता है। जीवन में संतुलन बनाए रखने में इसका बड़ा योगदान होता है।
  • वायु : यह पवित्रता और ऊर्जा का प्रतीक है। यह जीवन को चलाने वाली एक अहम शक्ति मानी जाती है।
  • अग्नि : यह ऊर्जा, उत्साह और जोश को दर्शाता है। यह मानसिक शांति और सकारात्मक सोच से जुड़ा होता है।
  • अंतरिक्ष : यह स्रोत व्यक्ति की क्षमता और ब्रह्मांडीय संबंध को दर्शाता है। यह सुनने की शक्ति और स्वतंत्रता की भावना से जुड़ा हुआ है। आइए नीचे हिन्दी में वास्तु शास्त्र (Vastu shastra in hindi) के 3 सिद्धांत के बारे में जानें।

वास्तु शास्त्र के 3 सिद्धांत

नीचे हिन्दी में वास्तु (Vastu in hindi) की तीन सिद्धांत दिए गए हैं जिसे आप पढ़ सकते हैं।

  • भोगाद्या : पूरा परिसर इस तरह बनाया जाना चाहिए कि वह सुविधाजनक और काम करने में आसान हो।
  • सुखद दर्शन : दिखावट और पूरे स्थान की सुंदरता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • राम्या : परिसर में सुख-शांति और सुरक्षा का एहसास होना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र का वास्तु शास्त्र से क्या संबंध है?

वास्तु एवं ज्योतिष के बीच के संबंध को समझने के लिए लोगों को थोड़ा मुश्किल होता है। हालांकि सरल अर्थ में वास्तु एवं ज्योतिष के बीच संबंध बनाने वाला कारक दिशाएँ हैं।

वास्तु शास्त्र में हर दिशा किसी न किसी ग्रह से जुड़ी होती है। इसलिए जब कोई व्यक्ति वास्तु के नियमों के अनुसार किसी खास दिशा में सकारात्मकता लाने की कोशिश करता है तो वह उस दिशा से जुड़े ग्रह और उससे संबंधित देवता के सकारात्मक प्रभाव को भी बढ़ाता है।

अब आइए जानते हैं कि वास्तु ज्योतिष में कौन-सी दिशा किस ग्रह से जुड़ी होती है, ये दिशाएं इस प्रकार हैं:

  1. पूर्व दिशा (रवि)

पूर्व दिशा के स्वामी भगवान इंद्र हैं जो वर्षा, समृद्धि, उत्सव, ऊर्जा और शक्ति के देवता माने जाते हैं। यह दिशा सूर्य से जुड़ी होती है इसलिए इसे सम्मान, प्रसिद्धि और सफलता से जोड़ा जाता है।

इसके अलावा, पूर्व दिशा व्यापार के लिए भी शुभ माना जाता है। कारोबार करने वाले लोगों को सलाह दी जाती है कि वे इस दिशा की ओर मुंह करके काम करें ताकि उन्हें अच्छे और लाभकारी परिणाम मिले।

  1. पश्चिम दिशा (शनि)

पश्चिम दिशा के स्वामी भगवान वरुण हैं। वास्तु शास्त्र में इसे जल तत्व से जोड़ा गया है। इन्हें जीवन में स्थिरता लाने के लिए भी जाना जाता है।

यह वित्तीय सलाहकारों, शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए सबसे सही दिशा मानी जाती है। इसके अलावा बेहतर और लाभदायक परिणाम पाने के लिए ऑफिस को पश्चिम दिशा में रखना भी फायदेमंद होता है।

  1. उत्तर दिशा (बुध)

उत्तर दिशा भगवान कुबेर की है। यह दिशा व्यक्ति के जीवन में धन, वृद्धि, लाभ और मुनाफा लाती है। उत्तर दिशा हमेशा हल्की और खुली होनी चाहिए, बिना किसी रुकावट के सकारात्मकता का स्वागत करना चाहिए।

यह दिशा महत्वपूर्ण दस्तावेज या लॉकर रखने के लिए सबसे अच्छी है। घर का प्रवेश द्वार, बैठक कक्ष, पूजा घर (मंदिर) और बालकनी भी इसी दिशा में होना शुभ माना जाता है।

  1. दक्षिण दिशा (मंगल)

दक्षिण दिशा को भगवान यम (मृत्यु के देवता) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। चूंकि दक्षिण दिशा के स्वामी भगवान यम हैं इसलिए इस दिशा को खून से जुड़ी बीमारियों, कानूनी परेशानियों और पारिवारिक समस्याओं से जोड़ा जाता है।

दक्षिण दिशा आमतौर पर संपत्ति और कानूनी मामलों से जुड़े वास्तु दोषों से जुड़ी होती है। इसलिए इस दिशा की दीवारें मजबूत और टिकाऊ बनवाना चाहिए ताकि समस्या कम हो।

  1. उत्तर पूर्व दिशा (बृहस्पति)

वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व दिशा को पवित्र माना जाता है और इस पर भगवान शिव का शासन है। उत्तर-पूर्व दिशा हमेशा साफ और खुली होनी चाहिए। साथ ही यह दिशा ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक है।

वास्तु के अनुसार इस दिशा में पूजा घर बनाना उचित है। इसके अलावा यह व्यक्ति को सफलता और सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए भी उपयुक्त है।

  1. उत्तर पश्चिम दिशा (चंद्रमा)

उत्तर-पश्चिम दिशा भगवान वायु से जुड़ी है। यह मानसिक स्थिरता को दर्शाती है और उस पर शासन करती है। वास्तु के अनुसार वायु तत्व इस दिशा पर हावी है। यह व्यक्ति के वित्त और यात्रा के अवसरों से भी जुड़ी है।

यह वास्तु दिशा पारिवारिक लाउंज, लिविंग रूम और मीटिंग या कॉन्फ्रेंस रूम बनाने के लिए सबसे अनुकूल है। इसके अलावा इस दिशा में बाथरूम बनाने से बचें।

  1. दक्षिण पूर्व दिशा (शुक्र)

दक्षिण पूर्व दिशा को अग्नि कोण भी कहा जाता है माना जाता है कि अग्निदेव इस पर शासन करते हैं। यह दिशा जोश, परिवर्तन और ऊर्जा से संबंधित है। यह वास्तु शास्त्र के अग्नि तत्व से जुड़ी है।

इसके अलावा यह दिशा कार्यालय में रसोई या लेखा विभाग रखने के लिए सही है। यह दिशा धन और समृद्धि लेकर आता है।

  1. दक्षिण पश्चिम दिशा (राहु)

कलयुग में दक्षिण-पश्चिम दिशा का बहुत महत्व है और यह राक्षस नैऋति से जुड़ा हुआ है। अगर दक्षिण-पश्चिम कोने में वास्तु दोष है तो व्यक्ति को रिश्तों, विवाह और यहां तक ​​कि संतान प्राप्ति में भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम कोने में पितृ (पूर्वजों) का वास होता है। इसलिए परिवार के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना बेहतर होता है।

  1. केंद्र या ब्रह्म स्थान (केतु)

ब्रह्म स्थान घर का केंद्र होता है और भगवान ब्रह्मा द्वारा शासित होता है। ऐसा कहा जाता है कि घर के इस हिस्से को साफ और अव्यवस्था मुक्त रखना चाहिए। यह घर का सबसे शक्तिशाली क्षेत्र है और सकारात्मकता का प्राथमिक स्रोत भी है।

वास्तु ज्योतिष के अनुसार, इस स्थान को खुला रखना और बिना छत के सीधे आसमान को देखना बहुत शुभ होता है। किसी को अपने घर के ब्रह्म स्थान में शौचालय, रसोई या सीढ़ी नहीं बनाना चाहिए। आइए नीचे वास्तु टिप्स पर एक नजर डाले।

मैं अपना वास्तु कैसे सुधार सकता हूँ?

सफलता पाने की इच्छा में हम अपना घर बनाते हैं लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि घर को सुखद और शांतिपूर्ण बनाने में वास्तु शास्त्र की अहम भूमिका होती है। यहाँ हम आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए कुछ आसान और असरदार वास्तु टिप्स पर बात करेंगे।

  • सबसे महत्वपूर्ण है सूर्य का प्रकाश, क्योंकि जिन घरों में सुबह की धूप आती ​​है वहां लोगों की ऊर्जा में प्रतिदिन सुधार होता है। सुबह की धूप आने के लिए हमेशा दरवाजे और खिड़कियां खुली रखनी चाहिए।
  • अपने घर को हमेशा व्यवस्थित रखें क्योंकि घर में जितनी अधिक अव्यवस्था होगी आपके जीवन में उतनी ही अधिक बाधाएं आएंगी।
  • वास्तु शास्त्र की सबसे उपयोगी युक्तियों में से एक है अपने घर को धूल-मुक्त रखना क्योंकि जैसे-जैसे धूल बढ़ती है आपके रिश्तों में समस्याएं आने लगती हैं।
  • सोते समय आपका सिर दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर होना सबसे अच्छा माना जाता है। पश्चिम दिशा भी ठीक है लेकिन सिर कभी भी उत्तर दिशा की ओर नहीं होना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल-

वास्तु शास्त्र को अक्सर वास्तुकला का विज्ञान कहा जाता है क्योंकि यह मुख्य रूप से घरों, इमारतों के डिजाइन और बुनियादी ढांचे से जुड़ा हुआ है।
यदि आप वास्तु विशेषज्ञों से परामर्श करते हैं जो आपको घर बनाने से पहले वास्तु शास्त्र के बारे में सभी जरूरी जानकारी प्रदान कर सकता है।
वास्तु दिशा-निर्देशों के अनुसार घर बनाने से आपके घर के पांच तत्वों का संतुलन बना रहता है जिससे जीवन के अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं। हालांकि यह पूरी तरह से व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह वास्तु का उपयोग करें या नहीं।
पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश वास्तु शास्त्र के पांच तत्व हैं। किसी भी तरह के डिजाइन और निर्माण करने से पहले इन सभी तत्वों पर विचार करना जरूरी है।
ज्योतिष में वास्तु विज्ञान का गहरा संबंध है जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही प्रत्येक दिशा का संबंध ज्योतिष के विभिन्न ग्रहों से भी है।
वास्तु शास्त्र में अलग-अलग दिशाओं को अलग-अलग चीजों के लिए सकारात्मक परिणाम लाने वाला बताया गया है। हालांकि, इन सभी में से पूर्व दिशा को सबसे अधिक लाभकारी और सकारात्मक दिशा माना जाता है।

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